पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Tuesday, January 12, 2010



गुरूभक्तियोग पुस्तक से - Guru Bhaktiyog Pustak se

प.पू. संत श्री आसारामजी बापूः एक अदभुत विभूति

ध्यान और योग के अनुभव कैसे प्राप्त किये जाएँ? पूजा पाठ, जप-तप ध्यान करने पर भी जीवन में व्याप्त अतृप्ति का कैसे निवारण करें? ईश्वर में कैसे मन लगायें? अपने अंदर ही निहित आत्मानंद के खजाने को कैसे खोलें? व्यावहारिक जीवन में परेशान करने वाले भय, चिन्ता, निराशा, हताशा, आदि को जीवन से दूर कैसे भगायें? निश्चिंतता, निर्भयता, निरन्तर प्रसन्नता प्राप्त करके जीवन को आनन्द से कैसे महकायें? अपने प्राचीन शास्त्रों में वर्णित आनन्द-स्वरूप ईश्वर के अस्तित्व की झाँकी हम अपने हृदय में कैसे पायें? क्या आज भी यह सब सम्भव है?
हाँ, सम्भव है, अवश्यमेव। मानव को चिंतित बनाने वाले इन प्रश्नों का समाधान साधना के निश्चित परिणामों के द्वारा कराके पिपासु साधकों के जीवन को ईश्वराभिमुख करके उन्हें मधुरता प्रदान करने वाले ऋषि-महर्षि और संत-महापुरूष आज भी समाज में मौजूद है। 'बहुरत्ना वसुन्धरा।' इन संत महापुरूषों की सुगंधित हारमाला में पूज्य संत श्री आसारामजी बापू एक पूर्ण विकसित सुमधुर पुष्प हैं।
अहमदाबाद शहर में, किन्तु शहरी वातावरण से दूर साबरमती नदी की मनमोहक प्राकृतिक गोद में त्वरित गति से विकसित हुए उनके पावन आश्रम के अध्यात्मपोषक वातावरण में आज हजारों साधक जाकर भक्तियोग, नादानुसंधानयोग, ज्ञानयोग एवं कुण्डलिनी योग की शक्तिपात वर्षा का लाभ उठाकर अपने व्यक्तिगत पारमार्थिक जीवन को अधिकाधिक उन्नत एवं आनन्दमय बना रहे हैं। चित्त में समता का प्रसाद पाकर वे व्यावहारिक जीवन-नौका को बड़े ही उत्साह से खे-खेकर निहाल होते जाते हैं।
प्राचीन ऋषि कुलों का स्मरण कराने वाले इस पावन आश्रम में कुण्डलिनी योग की सच्ची अनुभूति कराके आत्मिक प्रेमसागर में डुबकी लगवाने वाले, मानव समुदाय को ईश्वरीय आनन्द में सराबोर करने वाले, तप्त हृदयवाले हजारो संसारयात्रियों के आश्रयदाता, वट-वृक्षतुल्य, प्रेमपूर्ण हृदयवाले, अगमनिगम के औलिया, परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू ने सहज सान्निध्य एवं सत्संग मात्र लोगो को वेदान्त के अमृत-रस का स्वाद चखा रहे हैं।
संत श्री के नाम को सुनकर, उनकी पुस्तकें पढ़कर अनेक सज्जन उनके दर्शन और मुलाकात के लिए कुतूहलवश एक बार उनके आश्रम में आते है, फिर तो वे नियमित आने वाले साधक बनकर योग और वेदान्त के रसिक बन जाते हैं। वे अपने जीवन-प्रवाह को अमृतमय आनन्द-सिन्धु की तरफ बहते हुए देखकर हृदय में गदगदित हो जाते हैं, आनन्द में सराबोर हो जाते हैं।

एक अजब योगी

आश्रम में जाकर पूज्यश्री के दर्शन और आध्यात्मिक तेज से उद्दीप्त नयनामृत से सिक्त एक सुप्रसिद्ध लेखक, वक्ता, तंत्री सज्जन ने लिखा हैः
"कोई मुझसे पूछे की अहमदाबाद के आसपास कौन सच्चा योगी है ? मैं तुरन्त संत श्री आसारामजी बापू का नाम दूँगा। साबरतट स्थित एक भव्य एवं विशाल आश्रम में विराजमान इन दिव्यात्मा महापुरूष का दर्शन करना, वास्तव में जीवन की एक उपलब्धि है। उनके निकट में पहुँचना, निश्चित ही अहोभाग्य की सीमा पर पहुँचना है।
योगियों की खोज में मैं काफी भटका हूँ, पर्वत और गुफाओं के चक्कर काटने में कभी पीछे मुड़कर देखा तक नहीं। परन्तु प्रभुत्वशाली व्यक्ति के महाधनी ऐसे संत श्री आसारामजी बापू से मिलते ही मेरे अन्तर में प्रतीति सी हो गई कि यहाँ तो शुद्धतम सुवर्ण ही सुवर्ण है।

प्रेम और प्रज्ञा के सागर

संत श्री की आँखों में ऐसा दिव्य तेज जगमगाया करता है कि उनके अन्दर की गहरी अतल दिव्यता में डूब जाने की कामना करने वाला क्षणभर में ही उसमें डूब जाता है। मानो, उन आँखों में प्रेम और प्रकाश का असीम सागर हिलौरें ले रहा है।
वे सरल भी इतने कि छोटे-छोटे बालकों की तरह व्यवहार करने लगें। उनमें ज्ञान भी ऐसा अदभुत कि विकट पहेली को पलभर में सुलझा कर रख दें। उनकी वाणी की बुनकार ऐसी कि सजगता के तट पर सोनेवाले को क्षणभर में जगाकर ज्ञान-
सागर की मस्ती में लीन कर दें।

अनेक शक्तियों के स्वामी

अन्यत्र कहीं देखी न गई हो ऐसी योगसिद्धि मैंने अनेक बार उनमें देखी है। अनेक दरिद्रों को उन्होंने सुख और समृद्धि के सागर में सैर करने वाले बना दिये हैं। उनके चुम्बकीय शक्ति-सम्पन्न पावन सान्निध्य में असंख्य साधकों द्वारा स्वानुभूत चमत्कारों और दिव्य अनुभवों का आलेखन करने लगूँ तो एक विराट भागवत कथा तैयार हो जाय। आगत व्यक्ति के मन को जान लेने की शक्ति तो उनमें इतनी तीव्रता से सक्रिय रहती है मानो समस्त नभमण्डल को वे अपने हाथों में लेकर देख रहे हों।
ऐसे परम सिद्ध पुरूष के सान्निध्य में, उनकी प्रेरक पावन अमृतवाणी में से आपकी जीवन-समस्याओं का सांगोपांग हल आपको अवश्य मिल जायगा।
साबरतट पर स्थित चैतन्य लोक तुल्य संत श्री आसारामजी आश्रम में प्रविष्ट होते ही एक अदभुत शान्ति की अनुभूति होने लगती है। प्रत्येक रविवार और बुधवार को दोपहर 11 बजे से और हररोज शाम 6 बजे से एवं ध्यानयोग शिविरों के दौरान आश्रम में ज्ञानगंगा उमड़ती रहती है। आध्यात्मिक अनुभूतियों के उपवन लहलहाते हैं। आश्रम का सम्पूर्ण वातावरण मानो एक चैतन्य विद्युत्तेज से छलछलाता है। परम चैतन्य मानो स्वयं ही मूर्त्त स्वरूप धारण कर प्रेम और प्रकाश का सागर लहराते है। विद्यार्थियों के लिए आयोजित योग शिविरों में अनेक विद्यार्थियों एवं अध्यापकों ने अपने जीवन विकास का अनोखा पथ पा लिया है।
पूज्य बापूजी का विद्युन्मय व्यक्तित्व, अन्तस्तल की गहराई में से उमड़ती हुई वाणी की गंगधारा और आश्रम के समग्र वातावरण में फैलती हुई दिव्यता का आस्वाद एक बार भी जिस किसी को मिल जाता है वह कदापि उसे भूल नहीं सकता। जो अपने उर के आँगन में अमृत ग्रहण करने के लिए तत्पर हो, उसे अमृत का आस्वाद अवश्य मिल जाता है।
ब्रह्मनिष्ठ, योगसिद्ध, माधुर्य के महासिन्धु समान संत श्री आसाराम जी बापू का सान्निध्य- सेवन करने वाले का और अमृतवर्षा को संग्रहित करने वाले का अल्प पुरूषार्थ भी व्यर्थ नहीं जायेगा ऐसा अनेकों का अनुभव बोल रहा है।

गुरूतत्त्व

जिस प्रकार पिता या पितामह की सेवा करने से पुत्र या पौत्र खुश होता है इसी प्रकार गुरू की सेवा करने से मंत्र प्रसन्न होता है। गुरू, मंत्र एवं इष्टदेव में कोई भेद नहीं मानना। गुरू ही ईश्वर हैं। उनको केवल मानव ही नहीं मानना। जिस स्थान में गुरू निवास कर रहे हैं वह स्थान कैलास हैं। जिस घर में वे रहते हैं वह काशी या वाराणसी है। उनके पावन चरणों का पानी गंगाजी स्वयं हैं। उनके पावन मुख से उच्चारित मंत्र रक्षणकर्त्ता ब्रह्मा स्वयं ही हैं।
गुरू की मूर्ति ध्यान का मूल है। गुरू के चरणकमल पूजा का मूल है। गुरू का वचन मोक्ष का मूल है।
गुरू तीर्थस्थान हैं। गुरू अग्नि हैं। गुरू सूर्य हैं। गुरू समस्त जगत हैं। समस्त विश्व के तीर्थधाम गुरू के चरणकमलों में बस रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, इन्द्र आदि सब देव और सब पवित्र नदियाँ शाश्वत काल से गुरू की देह में स्थित हैं। केवल शिव ही गुरू हैं।
गुरू और इष्टदेव में कोई भेद नहीं है। जो साधना एवं योग के विभिन्न प्रकार सिखाते है वे शिक्षागुरू हैं। सबमें सर्वोच्च गुरू वे हैं जिनसे इष्टदेव का मंत्र श्रवण किया जाता है और सीखा जाता है। उनके द्वारा ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
अगर गुरू प्रसन्न हों तो भगवान प्रसन्न होते हैं। गुरू नाराज हों तो भगवान नाराज होते हैं। गुरू इष्टदेवता के पितामह हैं।
जो मन, वचन, कर्म से पवित्र हैं, इन्द्रियों पर जिनका संयम है, जिनको शास्त्रों का ज्ञान है, जो सत्यव्रती एवं प्रशांत हैं, जिनको ईश्वर-साक्षात्कार हुआ है वे गुरू हैं।
बुरे चरित्रवाला व्यक्ति गुरू नहीं हो सकता। शक्तिशाली शिष्यों को कभी शक्तिशाली गुरूओं की कमी नहीं रहती। शिष्य को गुरू में जितनी श्रद्धा होती है उतने फल की उसे प्राप्ति होती है। किसी आदमी के पास अगर यूनिवर्सिटी की उपाधियाँ हों तो इससे वह गुरू की कसौटी करने की योग्यतावाला नहीं बन जाता। गुरू के आध्यात्मिक ज्ञान की कसौटी करना यह किसी भी मनुष्य के लिए मूर्खता एवं उद्दण्डता की पराकाष्ठा है। ऐसा व्यक्ति दुनियावी ज्ञान के मिथ्याभिमान से अन्ध बना हुआ है।

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