पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Monday, December 31, 2012

योग व उच्च संस्कार पुस्तक से

विद्यार्थियों के महान आचार्य

"हे  विद्यार्थियो ! तुम्हारे लिए असम्भव कुछ नहीं है, तुम सब कुछ कर सकते हो। दुर्बल विचारों को झाड़ फेंको। उठो, जागो.... जिनके जीवन में ऐहिक शिक्षा के साथ दीक्षा हो, प्रार्थना, ध्यान एवं उपासना के संस्कार हों, उनका जीवन महानता की सुवास से महक उठता है।" पूज्य बापू जी।
स्कूलों कॉलेजों में जो सिखाया जाता है वह आजीविका पाने के लिए उपयोगी हो सकता परंतु जीवन-निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण इस काल में यदि विद्यार्थी को उसकी सुषुप्त शक्तियों को जगाने की युक्तियाँ न मिलें, उद्यम, साहस, धैर्य आदि को जीवन में लाने की कुंजियाँ न मिलें, माता-पिता व गुरुजनों के आदर के सुसंस्कार न मिलें तो वह विद्यार्थी छोटी-छोटी बात में आत्महत्या करने पर उतारू होने वाला, सुशिक्षित विफल नागरिक बनेगा। खिन्न, व्यसनी, विकृत-स्वार्थी सोचवाला अशांत आत्मा बनेगा।
विद्यार्थियों को अपने सर्वांगीण विकास हेतु सर्व विद्याओं की जननी ब्रह्मविद्या के अनुभवनिष्ठ आचार्य पूज्य बापूजी के सत्संग-सान्निध्य में एवं विद्यार्थी तेजस्वी तालीम शिविरों में अवश्य जाना चाहिए। वहाँ हमें माता-पिता की सेवा के संस्कार एवं अपने जीवन-उत्थान का राजमार्ग मिल जाता है।

पूज्य श्री देश के विभिन्न स्थानों में घूम-घूमकर ʹविद्यार्थी तेजस्वी तालीम शिविरों के द्वारा तथा आपश्री की प्रेरणा से चलाये जा रहे 17000 बाल संस्कार केन्द्रों, विद्यालयों में चलाये जाने वाले ʹयोग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रमों, ʹयुवाधन सुरक्षा अभियानोंʹ, ʹयुवा सेवा संघोंʹ व ʹमहिला उत्थान मंडलोंʹ के द्वारा राष्ट्र में बाल, युवा एवं नारी जागृति का शंखनाद कर रहे हैं। आप ʹसंयम-शिक्षाʹ के प्रबल पक्षधर हैं। आपके संयम-शिक्षा सदग्रंथ ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाशʹ की एक करोड़ बहत्तर लाख से भी अधिक प्रतियाँ बंट चुकी हैं। अखिल भारतीय साधु समाज के सचिव व संत समिति के महामंत्री श्री हंसदासजी महाराज ने भी इस सदग्रंथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

क्रिकेट मैचों में भारत की विजय में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले सफल तेज बॉलर इशांत शर्मा कहते हैं- "जब से मैंने पूज्य बापू जी का मार्गदर्शन व आशीर्वाद पाया है, तब से मेरे जीवन में सफलता का द्वार खुल गया है। ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाशʹ ग्रंथ देश के हर युवक-युवती को अवश्य पढ़ना चाहिए।"

पूज्यश्री की समझाने की शैली इतनी सूत्रात्मक, स्नेहात्मक, हितभरी और अदभुत है कि कितना भी कमजोर विद्यार्थी हो, उसे सफल जीवन की कुंजियाँ अच्छी तरह से के अनुभवनिष्ठ आचार्य हैं तो दूसरी और बाल मनोविज्ञान के समर्थ ज्ञाता भी। आप ʹबाले बालवताम्ʹ अर्थात् बालकों में बालवत् होकर हँसते-मुस्कराते उन्हें गीता और वेदान्त का सार भाग अत्यन्त सरल, सुलभ भाषा में बताते हैं।

न स्रेधन्तं रविर्नशत्। ʹअवसर चूकने वाले को श्री नहीं मिलती।ʹ (सामवेद, उत्तरार्धिकः 4.4.7)
पूज्य श्री की सारस्वत्य मंत्रदीक्षा, यौगिक प्रयोगों व सफलता की कुंजियों के अदभुत परिणाम आज समाज में प्रत्यक्ष दिखाई दे रहे हैं- अनेक राष्ट्रस्तरीय संगीत प्रतियोगिताओं में प्रथम विजेता संगीत जगत की नवोदित गायिका भव्या पंडित अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय बापूजी से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा व गुरुकृपा को देती हैं। ʹनेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशनʹ के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित युवा वैज्ञानिक एवं फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. राहुल कत्याल अपने कमजोर विद्यार्थी-जीवन को याद कर कहते हैं कि ʹʹपूज्य बापू जी से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा प्रतिभा-विकास की संजीवनी बूटी है।" ऐसा ही कहना है अजय मिश्रा का, जिन्होंने दीक्षा द्वारा स्मृति की कमजोरी को भगाकर नोकिया में ʹग्लोबल प्रॉडक्ट मैनेजरʹ पद प्राप्त किया। वे सालाना करीब 30 लाख रूपये वेतन पाते हैं।

भैंसे चराने वाला व ढाई रूपये की टायर की चप्पल खरीदने में भी कठिनाई अनुभव करने वाला गरीब बालक क्षितिज सोनी पूज्य श्री से प्राप्त सारस्वत्य मंत्र के अनुष्ठान व ʹश्री आसारामायण पाठʹ के प्रभाव से आज ʹगो एयरʹ (हवाई जहाज कम्पनी) में एयरक्रॉफ्ट इंजीनियर है व सालाना 21.60 लाख रूपये वेतन पा रहे हैं। एक ऐसे भी युवक हैं जिन्हें पूज्य श्री से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा व स्मृतिवर्धक यौगिक प्रयोगों ने विश्व के 25 अदभुत व्यक्तियों में स्थान दिला दिया है। वे हैं विरेन्द्र मेहता, जिन्होंने ऑक्सफोर्ड एडवास्ड लर्नर्स डिक्शनरीʹ के 80000 शब्दों को उनकी पृष्ठ-संख्यासहित याद कर विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया है।

इसके सिवा लाखों ऐसे विद्यार्थी हैं जिन्हें ब्रह्मविद्या के आचार्य पूज्यश्री का मार्गदर्शन मिला और उनकी स्मृतिशक्ति, निर्णयक्षमता एवं अनेक सुषुप्त योग्यताओं का विलक्षण विकास हुआ है तथा हर क्षेत्र में सफलता उनके चरण चूमने लगी है। तभी तो बापूजी से दीक्षित सभी विद्यार्थियों का यह घोषवाक्य हैः बापूजी के बच्चे, नहीं रहते कच्चे।

पूज्य श्री के मार्गदर्शन में स्कूलों में गरीब विद्यार्थियों को पेन, पेंसिल, नोटबुक, स्कूल बैग, यूनिफार्म एवं प्रेरक सत्साहित्य आदि का निःशुल्क वितरण किया जाता है। आदिवासी क्षेत्रों के छात्रों में बिछायत, फर्नीचर, कपड़े वितरण के साथ बाल-भोज (भंडारा) का भी आयोजन किया जाता है।

छुट्टियों में विद्यार्थियों की दीनता हीनता व दुर्बलता की छुट्टी करने हेतु ʹविद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविरोंʹ का एवं स्कूलों में योग व संस्कार शिक्षा प्रदान करने हेतु ʹयोग व उच्च संस्कार शिक्षाʹ अभियानों का आयोजन जोर-शोर से भी किया जा रहा है। छात्रों के विकास के लिए राष्ट्रस्तरीय ʹज्ञानप्रतियोगिताओंʹ का आयोजन भी किया जा रहा है, जिनसे मात्र चार वर्षों में 30 लाख से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित हो चुके हैं।

देश के युवाओं को ʹवेलेन्टाइन डेʹ की पाश्चात्य आँधी से बचाने व माता-पिता एवं उनकी संतानों के बीच आपसी प्रेम बढ़ाने हेतु पूज्य बापू जी की पहल हैः ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ। यह हर वर्ष 14 फरवरी को घरों में एवं अनेक विद्यालयों में मनाया जाता है। विश्वप्रसिद्ध विभिन्न विभूतियों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

विद्यार्थियों के लिए पूज्य श्री के सत्संग की वी.सी.डी., एमपीथ्री तथा सत्साहित्य भी उपलब्ध है, जिनमें यादशक्ति बढ़ाने व परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की युक्तियाँ तथा जीवन को सही दिशा देने वाले छोटे-छोटे प्रेरक प्रसंग हैं। इनका लाभ लेकर लाखों-लाखों युवानों का जीवन उन्नत हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा। पूज्य बापू जी के विद्यार्थी-विशेष सत्संग, कीर्तन, सफल विद्यार्थियों के अनुभव आदि आप http://www.bsk.ashram.org पर देख सकते हैं।

समर्थ मार्गदर्शक पूज्य बापू जी संयम की शिक्षा देकर युवकों को सुदृढ़ शरीर, कुशाग्र बुद्धि, महान आत्मबल व बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न बनाकर राष्ट्र एवं विश्व को आदर्श नागरिक देना चाहते हैं। पूज्य श्री कहते हैं- ʹʹजिन व्यक्तियों के जीवन में संयम-व्यवहार नहीं है, वे न तो स्वयं की ठीक से उन्नति कर पाते हैं और न ही समाज में कोई महान कार्य कर पाते हैं। भौतिकता की विलासिता और अहंकार उनको ले डूबता है। वे रावण और कंस की परम्परा में जा डूबते हैं। ऐसे व्यक्तियों से बना हुआ समाज और देश भी सच्ची सुख-शांति व आध्यात्मिक उन्नति में पिछड़ जाता है।

हे भारत के विद्यार्थियो ! तुम संयम-सदाचारयुक्त जीवन जीकर अपना जीवन तो समुन्नत करो ही, साथ ही देश की उन्नति के लिए भी प्रयत्नशील रहो। वही सफल होता है जो आत्म-उन्नति करना जानता है। अपनी संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले विदेशियों की कुचालों से सावधान रहो और अपनी संस्कृति की गरिमा बढ़ाओ। इसी में तुम्हारा व परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता का हित निहित है।"
धर्मणा वायुमा विश। ʹहे मानव ! तू धर्म के द्वारा ऊँचा उठ।ʹ (ऋग्वेदः 9.15.2)
प्रेता जयता नर। ʹआगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो।ʹ (ऋग्वेदः 10.103.13)