पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Friday, October 7, 2011

परम तप  पुस्तक से - Param Tap pustak se


दृश्य से अदृश्य की ओर - Drishya se Uddeshya ki or

एकाग्रता साधने के कई उपाय हैं। जैसेः हम छत पर सोये हैं। पलकें गिराये बिना चाँद को निहारते-निहारते लेटे हैं। कुछ समय के बाद एक के बदले दो चाँद दिखने लग जायेंगे। फिर तीन दिखने लग जायेंगे। आँखे खुली होंगी और तीनों के तीनों अदृश्य भी हो जायेंगे। हम दृश्य में फँसे हैं। दृश्य को देखते-देखते हम अदृश्य में पहुँच जायेंगे। व्यक्त में फँसे हैं लेकिन व्यक्त को निहारते-निहारते हमारी चेतना अव्यक्त में चली जायेगी।
रमण महर्षि के पास ऐसी योग्यता थी। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री जैसे व्यक्ति को उन्होंने ऐसी शांति दी कि वर्षों तक उनके द्वारा महर्षि की प्रशंसा के गीत गाये गये। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजीभाई देसाई देश-विदेश में अपना यह अनुभव कहा करते थे किः "मैं कलेक्टर से लेकर प्रधानमंत्री तक के पद पर रहा लेकिन रमण महर्षि के चरणों में जो सुख-शांति मिली वह किसी पद के भोग में नहीं मिली।"
रमण महर्षि के चित्त में जो अव्यक्त का आनन्द छा जाता था वह एकाग्रता के द्वारा सारी सभा को भी मिल जाता था।
कभी दीये की जलती लौ पर पलकें गिराये बना देखते जाओ। भूत-प्रेत को देखने के लिए भी लोग लौ का उपयोग करते हैं। लेकिन तुम भूत-प्रेत के चक्कर में मत पड़ना। उसमें कोई सार नहीं।
लौ को निहारते जाओ... निहारते जाओ, फिर आँखे बन्द कर दो तो वही लौ ललाट में दिखेगी। थोड़ी देर के बाद वह अदृश्य हो जायेगी। आँखें खोलकर फिर से लौ को निहारो। ऐसे भी एकाग्रता बढ़ती है।
ऊपर नीचे के दाँतों के बीच जिह्वा के अग्र भाग को रोक दो। मुँह ऐसे बन्द करो कि जिह्वा न ऊपर तालू में लगे न नीचे लगे। मुँह के अवकाश में टिक जाये। ऐसा करके जिह्वा को मन से निहारते जाओ... निहारते जाओ। इससे भी एकाग्रता में मदद मिलेगी।
घड़ी का काँटा सेकण्ड-सेकण्ड करके घूम रहा है। इस काँटे को देखते हुए सेकण्डों को गिनते जाओ। इससे भी एकाग्रता की साधना हो सकती है।
मन में  विचार चल रहे हैं। एक विचार उठा और गया। दूसरा अभी उठने को है। इसके बीच की जो निर्विचार अवस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो तुरन्त साक्षात्कार का स्वाद आने लगेगा। दो विचारों के बीच की जो मध्यावस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो चन्द दिनों में ऐसी ऊँचाई को पा लोगे की तुम्हारे आगे इन्द्र का राज्य भी कुछ नहीं लगेगा।
कभी तुम नदी, सरोवर या सागर के तट पर बैठे हो तब पानी को निहारते-निहारते चित्त को एकाग्र करो। कभी घर में ही त्राटक का अभ्यास करो। दीवार पर लगे हुए काले गोलाकार के बीच पीले बिन्दु को निहारते जाओ.... निहारते जाओ। आँखों की पलकें न गिरें। जब तक आँखों से पानी न गिरे तब तक निहारते जाओ। दिनोंदिन अभ्यास बढ़ाते जाओ। कुछ ही दिनों में शक्ति आने लगेगी। सामर्थ्य का एहसास होगा। उस शक्ति या सामर्थ्य को पढ़ाई में खर्च करो, धन्धे में खर्च करो, कहीं भी खर्च करो लेकिन हम तो चाहते हैं कि उस शक्ति को शक्तिदाता परमात्मा के साक्षात्कार के लिए खर्च करके तुम उसको पा लो।
अनेक प्रकार के प्रयोग हैं जिनके अभ्यास से तुम सर्वोच्च तपस्या में सफल हो सकते हो। सारी सृष्टि का जो आधार है वह भी एकाग्रता से प्राप्त हो सकता है। महावीर इतने एकाग्र हो गये कि कानों में कीलें लगाई गईं फिर भी उनके चित्त में क्षोभ न हुआ। यह एकाग्रता का ही प्रभाव है कि क्षत्रिय राजकुमार वर्धमान, भगवान महावीर होकर पूजे जा रहे हैं।
हर व्यक्ति ऊँचा होना चाहता है, हर इन्सान अदभुत होना चाहता है, सबसे निराला होना चाहता है लेकिन जिससे निराला बना जाता है उस पर ध्यान नहीं है।
एकाग्रता साधने के लिए ध्यान की भिन्न-भिन्न रीतियाँ अपनायी जाती हैं। अपने मूलाधार चक्रपर चित्त एकाग्र करने से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है। काम का केन्द्र राम में बदल सकता है, भय निर्भयता में, घृणा प्रेम में, हिंसा अहिंसा में, स्पर्धा समता में बदल सकती है।
बार-बार किसी रूप को निहारते-निहारते उसी में चित्त को एकाग्र किया जाता है। गुरु, गोबिन्द, भगवान जो भी रूप प्यारा लगे उसको देर तक एकटक निहारते-निहारते आँखें बन्द करके भ्रूमध्य में उसी रूप को देखा जाये। ऐसा अभ्यास करने वाले साधक भी अदभुत सिद्धियाँ और सामर्थ्य पा सकते हैं। किसी रोग को निवृत्त करने के लिए इसी प्रकार एकाग्र होकर बार-बार संकल्प करने से रोग निवृत्त होते हैं। जन्म-मृत्यु का भवरोग निवृत्त करने के लिए एकाग्रता का उपयोग साक्षीभाव में किया जाता है।
भक्तों की भक्ति, जपी का जप, योगी का योग तब फलता है जब एकाग्रता होती है। भोगी को भी सफलता तब मिलती है जब कुछ घड़ियों के लिए, कुछ समय के लिए वह एकाग्र होता है।

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