पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Saturday, September 24, 2011



बाल संस्कार केन्द्र पाठ्यक्रम पुस्तक से - Baal Sanskar Kendra Pathyakram

मांसाहार छोड़ो... स्वस्थ रहो - Mansahaar chhodo... Swasth raho

"यदि हृदयरोग, कैन्सर, मधुमेह, रक्तचाप, अस्थमा तथा नपुंसकता जैसी बीमारियों से बचना हो अथवा उनकी असंभावना करनी हो तो आज से ही मांसाहार पूर्णरूप से बंद करके पूर्ण शाकाहारी बन जाइये।"
यह चेतावनी अमेरिका के 'फिजिशियन कमेटी फॉर रिस्पॉन्सिबल मेडिसन' के चेयरमैन डॉ. नील बर्नार्ड ने अमदावाद के 'एन. एच. एल. म्युनिसिप मेडिकल कॉलेज' में दी। जो भारतीय मांसाहार करते हैं उनके प्रति आश्चर्य व्यक्त करते हुए डॉ. बर्नार्ड ने कहाः "संसार के अत्यंत ठंडे देशों की जनता मौसम के अनुकूल होने की दृष्टि से मांसाहार का सेवन करती है परन्तु वह जनता भी अब जागृत होकर सम्पूर्ण रूप से शाकाहारी बन रही है। ऐसे में भारत जैसे गर्म देश की जनता मांसाहार किसलिए करती है, यह समझ में नहीं आता।
मांसाहार से शरीर में चर्बी की परतें जम जाती हैं और धीरे-धीरे रक्त की गाँठें बनने लगती हैं। रक्तसंचरण की क्रिया पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा प्राणियों के मांस में विद्यमान हानिकारक रासायनिक पदार्थ भी कैन्सर की संभावना बढ़ाते हैं। प्राणियों के मांस में कौन-कौन से जहरीले पदार्थ होते हैं, यह एक आम आदमी नहीं जानता। पूर्ण शाकाहारी एवं संतुलित आहार लेनेवाले व्यक्ति की तुलना में मांसाहारी व्यक्ति में हृदयरोग एवं कैन्सर की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है, यह प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है।
हृदय रोग का शिकार मांसाहारी मरीज भी यदि शाकाहारी बन जाय तो वह अपने हृदय को पुनः तन्दुरूस्त बना सकता है। प्राणियों की चर्बी और कोलस्टरोल मानव शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है। प्राणियों का मांस वास्तव में शरीर को धीरे-धीरे कब्रिस्तान में बदल देता है। यदि स्त्रियाँ मांसाहार अधिक करती हैं तो उनमें स्तन कैन्सर की संभावना बढ़ जाती है। मांसाहारियों की शाकाहारियों की अपेक्षा 'कोलोना कैन्सर' अधिक होता है।
अण्डे भी इस विषय में इतने ही हानिकारक हैं। प्रोस्टेट कैन्सर में मांसाहार एवं अण्डे कारणरूप साबित हो चुके हैं। अधिक चर्बीयुक्त पदार्थ शरीर में 'एस्ट्रोजन' की मात्रा बढ़ाते हैं। इससे यौन हार्मोन्स में गड़बड़ी होती है तथा स्तन एवं गर्भाशय के कैन्सर और नपुंसकता की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
शाकाहारी व्यक्तियों के रक्त में कैन्सर कोषों से लड़ने वाले प्राकृतिक कोषों एवं श्वेत रक्तकणों का उत्तम संयोजन होता है।
यदि पूर्ण मांसाहारी मनुष्य भी मात्र तीन सप्ताह तक के लिए शाकाहारी बन जाय तो उसका कोलेस्टरोल, रक्तचाप, हायपरटेंशन आदि काफी मात्रा में नियंत्रित हो सकता है।
मांसाहारी व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम, ऑक्सेलेट एवं युरिक अम्ल अधिक मात्रा में पैदा होते हैं जिससे पथरी होने का खतरा बना रहता है। शरीर में कैल्शियम का होना जरूरी है परन्तु उसके लिए मांसाहार की आवश्यकता नहीं है। विटामिन बी-12 भी कंदमूल से बहुत अधिक मात्रा में मिल जाता है। इस संदर्भ में हजारों वर्ष पहले भारत का शुद्ध-सात्त्विक आहार आदर्श माना जा सकता है।"

कोलस्टरोल नियंत्रित करने का आयुर्वैदिक उपचार

आधुनिक भाषा में जिसे कोलेस्टरोल कहते हैं, उसे नियंत्रित करने का सुगम उपाय यह है कि दालचीनी (तज) का पाउडर बना लें। एक से तीन ग्राम तक पाउडर पानी में उबालें। उबला हुआ पानी कुछ ठंडा होने पर उसमें शहद मिलाकर पीने से कोलेस्टरोल जादुई ढंग से नियंत्रित होने लगता है। एक माह तक यह प्रयोग करें। तज का पाउडर गर्म प्रकृति का होता है। इसका ज्यादा प्रयोग करने से शरीर में अधिक गर्मी उत्पन्न हो जाती है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। सर्दियों में यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। अतः ठण्डी में इसकी मात्रा बढ़ा सकते हैं किन्तु गर्मी में कम कर देना चाहिए।
तज के पाउडर को दूध में लेना हो तो दूध उबालने के पहले उसमें उसे डाल लें। दूध के साथ शहद विरूद्ध आहार है, अतः हानिकारक है। डायबिटीजवाले उसमें मिश्री मिला सकते हैं अथवा उसे फीका भी पी सकते हैं। इससे धातु भी पुष्ट होती है तथा वीर्यक्षय को रोकने में मदद मिलती है।

मांसाहारः गंभीर बीमारियों को बुलावा

मांसाहार से होने वाले घातक परिणामों के विषय में सभी धर्मग्रन्थों में बताया गया है परन्तु आज के समाज का अधिकांश प्रत्येक पहलू को विज्ञान की दृष्टि से देखना पसन्द करता है। देखा जाय तो प्रायः सभी धर्म ग्रन्थों के प्रेरणास्रोत ऐसे महापुरूष रहे हैं जिन्होंने प्रकृति के रहस्यों को जानने में सफलता प्राप्त की थी तथा प्रकृति से भी आगे की यात्रा की थी। फलतः उनके प्रकृति से भी आगे के रहस्य को जानने वाला आज का विज्ञान भला कैसे झुठला सकता है, अर्थात् विज्ञान ने भी अपनी भाषा में शास्त्रों की उसी बात को दोहराया है।
मांसाहार पर हुए अनेक परीक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि मांसाहार का अभिप्राय है गम्भीर बीमारियों को बुलावा देना। मांसाहार से कैन्सर, हृदय रोग, चर्म रोग, कुष्ठरोग, पथरी एवं गुर्दों से सम्बन्धित बीमारियाँ बिना बुलाये ही चली आती हैं।
व्यापारिक लाभ की दृष्टि से पशुओं का वजन बढ़ाने के लिए उन्हें अनेक रासायनिक मिश्रण खिलाये जाते हैं। इन्ही मिश्रणों में से एक का नाम है डेस(डायथिस्टिल-बेस्ट्राल)। इस मिश्रण को खाने वाले पशु के मांस के सेवन से गर्भवती महिला के आनेवाली संतान को कैन्सर हो सकता है। यदि कोई पुरूष इस प्रकार के मांस का भक्षण करता है तो उसमें 'स्त्रैणता' आ जाती है अर्थात् उसमें स्त्री के हारमोन्स अधिक विकसित होने लगते है तथा पुरूषत्व घटता जाता है।
मांस में पौष्टिकता के नाम पर यूरिक अम्ल होता है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अलेक्जेण्डर के अनुसार यह अम्ल शरीर में जमा होकर गठिया, मूत्रविकार, रक्त विकार, फेफड़ों की रूग्णता, यक्षमा, अनिद्रा, हिस्टीरिया, एनिमीया, निमोनिया, गर्दन दर्द तथा यकृत की अनेक बीमारियों को जन्म देता है।
मांसाहार से शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। यह कोलेस्ट्रोल धमनियों में जमा हो जाता है तथा उनको मोटा कर देता है जिससे रक्त के परिवहन में अवरोध पैदा होता है। धमनियों मे रक्त-परिवहन सुचारू तथा प्राकृतिक रूप से न होने के कारण हृदय पर घातक असर पड़ता है तथा दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप आदि की संभावना शत-प्रतिशत बढ़ जाती है।
जापान के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर बेंज के अनुसार, 'बूचड़खानों में मृत्यु के झूले में  झूलते तथा यातनायें सहते प्राणी के शरीर में दुःख, भय तथा क्रोध आदि आवेशों से युक्त हारमोन्स तीव्र गति से पैदा होते हैं। ये हारमोन्स कुछ ही क्षणों में रक्त घुल जाते हैं तथा मांस पर भी उनका नियमित प्रभाव पड़ता है। ये ही हारमोन्स जब मांस के माध्यम से मनुष्य के शरीर तथा रक्त में जाते हैं तो उसकी सुप्त तामसिक प्रवृत्तियों को उत्तेजित करने का कार्य बड़ी तेजी से करते हैं।"
डॉ. बेंज ने तो अपने अनेक प्रयोगों के आधार पर यहाँ तक कह दिया है कि, "मनुष्य में क्रोध, उद्दण्डता, आवेग, आवेश, अविवेक, अमानुषिकता, आपराधिक प्रवृत्ति तथा कामुकता जैसे दुष्टकर्मों को भड़काने में मांसाहार का बहुत ही महत्त्वपूर्ण हाथ है।"
मांसाहार में प्रोटीन की व्यापकता की दुहाई देने वालों के लिए वैज्ञानिक कहते हैं कि, "मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या नहीं, अपितु समस्याएँ की कतारें खड़ी कर देता है। इससे कैल्शियम के संचित कोष खाली हो जाते हैं तथा गुर्दों को बेवजह परिश्रम करना पड़ता है जिससे वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।"
मांसाहार कब्ज का जनक है क्योंकि इसमें रेशे (फाइबर) की अनुपस्थिति होती है जिससे आँतों की सफाई नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त कत्लखाने में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त पशुओं का भी कत्ल हो जाता है। ये रोग मांसाहारी के पेट में मुफ्त में पहुँच जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से मांसाहार इतना मंहगा है कि एक मांसाहारी की खुराक में लगे पैसों से कई शाकाहारियों का पेट भरा जा सकता है।
इस प्रकार मांसाहार की हानियों को उजागर करने वाले सैंकड़ों तथ्य हैं। अस्तु मांसाहार कि विरोध तो आर्षदृष्टा ऋषियों ने, सन्तों-कथाकारों ने सत्संग में भी किया, वही विरोध अब विज्ञान के क्षेत्र में भी हुआ है। फिर भी आपको मांसाहार करना है, अपनी आनेवाली पीढ़ी को कैन्सर ग्रस्त करना है, अपने को बीमारियों का शिकार बनाना है तो आपकी मर्जी। अगर आपको अशान्त-खिन्न-तामसी होकर जल्दी मरना है, तो करिये मांसाहार, नहीं तो त्यागिये मांसाहार। गुटखा, पान-मसाला, शराब को त्यागिये भैया ! हिम्मत कीजिये.... अपनी सोई हुई सज्जनता जगाइये.... अपनी महानता में जागिये.....

मांसाहारी मांस खाता है परंतु मांस उसकी हड्डियों को ही खा जाता है !

सेन फ्रांसिका स्थित कैलिफौर्निया विश्वविद्यालय के मेडिकल सेन्टर, माउण्ट जीओन में डॉ. सेलमायर द्वारा किये गये एक नवीन शोध के अनुसारः "पशुओं की चर्बी से मिलने वाले प्रोटीन का अस्थिक्षय एवं हड्डियाँ टूटने के रोगों से घनिष्ट संबंध है।"
अम्ल को क्षार में रूपान्तरित करने वाला रसायन (बेज़) सिर्फ फल एवं शाकाहार से ही प्राप्त होता है। मांसाहार से शरीर में अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। उसे क्षार में रूपान्तरित करने के लिए हड्डियों की मज्जा में स्थित बेज़ को काम में लाना पड़ता है, क्योंकि हड्डियाँ मज्जा एवं कैल्शियम से बनी होती हैं अतः मज्जा के क्षय होने से हड्डियाँ धीरे-धीरे गलने लगती हैं। इससे अस्थिक्षय की बीमारी उत्पन्न होती है अथवा छोटी-सी चोट लगने पर भी व्यक्ति की हड्डियाँ टूटने की समस्या पैदा हो जाती है।

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