पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Wednesday, May 11, 2011


गुरू भक्ति योग पुस्तक से - Guru Bhakti Yog pustak se

गुरू के आश्रय में…  - Guru ke ashray me...


43. गुरू की सेवा के दौरान शिष्य को बहुत ही नियमित रहना चाहिए।
44. गुरू के दिव्य कार्य हेतु शिष्य को मन, वचन और कर्म में बहुत ही पवित्र रहना चाहिए।
45. अपने हृदय रूपी उद्यान में निष्ठा, सादगी, शान्ति, सहानुभूति, आत्मसंयम और आत्मत्याग जैसे पुष्प सुविकसित करो और वे पुष्प अपने गुरू को अर्घ्य के रूप में अर्पण करो।
46. शिष्य को गुरू की संपत्ति पर निगाह रखनी चाहिए। रक्षक की तरह उस पर सतत दृष्टि रखनी चाहिए।
47. ब्रह्मनिष्ठ गुरू की कृपा से प्राप्त न हो सके, ऐसा तीनों लोकों में कुछ भी नहीं है।
48. गुरूभक्तियोग का अभ्यास किये बिना साधक के लिए ईश्वर-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाले आध्यात्मिक मार्ग में प्रविष्ट होना संभव नहीं है।
49. गुरूभक्तियोग दिव्य सुख के द्वार खोलने के लिए गुरूचाबी है।
50. गुरूभक्तियोग के अभ्यास से सर्वोच्च शान्ति के राजमार्ग का प्रारंभ होता है।
51. सदगुरू के पवित्र चरणों में आत्मसमर्पण करना ही गुरूभक्तियोग की नींव है।
52. अगर आपको सदगुरू के जीवनदायक चरणों में दृढ़ श्रद्धा एवं भक्तिभाव होगा तो आपको  गुरूभक्तियोग के अभ्यास में अवश्य सफलता मिलेगी।
53. केवल मनुष्य का पुरूषार्थ ही योगाभ्यास के लिए पर्याप्त नहीं है लेकिन गुरूकृपा अनिवार्यतः आवश्यक है।
54. बाघ, सिंह या हाथी जैसे जंगली प्राणियों को पालना बहुत ही आसान है, पानी या आग पर चलना बहुत आसान है लेकिन मनुष्य में अगर गुरूभक्तियोग के अभ्यास के लिए तमन्ना न हो तो गुरू के चरणकमलों में आत्मसमर्पण करना बहुत कठिन है।
55. गुरूभक्तियोग के अभ्यास से शिष्य को सर्वोत्तम शान्ति, आनन्द और अमरता प्राप्त होती है।
56. जीवन का ध्येय गुरूभक्तियोग का अभ्यास करके सदगुरू की कल्याणकारी कृपा प्राप्त करना है।
57. गुरूभक्तियोग के अभ्यास से जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिलती है।
58. गुरूभक्तियोग अमरता, सनातन सुख, मुक्ति, पूर्णता, अखूट आनन्द एवं चिरंतन शान्ति देता है।
59. संसार या सांसारिक प्रक्रिया के मूल में मन है। बन्धन और मुक्ति, सुख और दुःख का कारण मन है। इस मन को गुरूभक्तियोग के अभ्यास से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
60. सदगुरू के दिव्य कार्य के वास्ते आत्मसमर्पण करना अथवा तन, मन, धन अर्पण करना चाहिए। सदगुरू की कल्याणकारी कृपा प्राप्त करने के लिए उनके पवित्र चरणों का ध्यान करना चाहिए। गुरू के पवित्र उपदेश को सुनकर निष्ठापूर्वक उसके मुताबिक चलना चाहिए।
61. उल्लू सूर्यप्रकाश के अस्तित्व में माने या न माने फिर भी सूर्य तो सदा प्रकाशित रहता है। उसी प्रकार अज्ञानी और चंचल मनवाला शिष्य माने या न माने फिर भी गुरू की कल्याणकारी कृपा तो चमत्कारी परिणाम देती है।
62. अपने गुरू को ईश्वर मानकर उनमें विश्वास रखो, उनका आश्रय लो, ज्ञान की दीक्षा लो।
63. केवल शुद्ध भक्ति से ही गुरू प्रसन्न होते हैं। गुरूभक्तियोग के अभ्यास के मन की शान्ति और स्थिरता प्राप्त होती है।
64. जिसने सदगुरू के पवित्र चरणों में आश्रय लिया है ऐसे शिष्य के पास से मृत्यु पलायन हो जाती है।
65. गुरूभक्तियोग का अभ्यास सांसारिक पदार्थों के प्रति वैराग्य और अनासक्ति पैदा करता है और अमरता प्रदान करता है।
66. सदगुरू के जीवनप्रदायक चरणों की भक्ति महापापी का भी उद्धार कर देती है।
67. जिसने सदगुरू के पवित्र चरणों में आश्रय लिया है ऐसे पवित्र हृदयवाले शिष्य के लिए कोई भी वस्तु अप्राप्त नहीं है।
68. साधुत्व और संन्यास से, अन्य योगों से एवं दान से, मंगल कार्य करने आदि से जो कुछ भी प्राप्त होता है वह सब गुरूभक्तियोग के अभ्यास से शीघ्र प्राप्त होता है।
69. गुरूभक्तियोग शुद्ध विज्ञान है। वह निम्न प्रकृति को वश में लाने की एवं परम आनन्द प्राप्त करने की रीति सिखाता है।
70. गुरूदेव की कल्याणकारी कृपा प्राप्त करने के लिए आपके अन्तःकरण की गहराई से उनको प्रार्थना करो। ऐसी प्रार्थना चमत्कार कर सकती है।
71. जिस शिष्य को गुरूभक्तियोग का अभ्यास करना है उसके लिए कुसंग एक महान शत्रु है।
72. जो नैतिक पूर्णता, गुरू की भक्ति आदि के बिना ही गुरूभक्तियोग का अभ्यास करता है उसे गुरूकृपा नहीं मिल सकती।

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