पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Tuesday, March 2, 2010



बाल संस्कार केन्द्र: एक महत्त्वपूर्ण कदम पुस्तक से - Baal Sanskaar Kendra: Ek Mehevapurna Kadam pustak se

बाल्यकाल के संस्कार एवं चरित्रनिर्माण ही मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला हैं।
बालक ही देश का असली धन है। भारत का भविष्य, विश्व का गौरव और अपने माता-पिता की शान हैं। बच्चे देश के भावी नागरिक हैं और आगे चलकर उन्हीं के कंधों पर देश की स्वतंत्रता, संस्कृति की रक्षा तथा उसकी परिपुष्टि का भार पड़ने वाला है।
आज प्रत्येक माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे न केवल स्कूली विद्या में ही सफल हों, अपितु अन्य कलाओं जैसे – खेलकूद, वक्तृत्व आदि तथा विभिन्न सामाजिक प्रवृत्तयों में भी आगे आयें और सफल बनें। विद्यालय में शिक्षक एवं प्रधानाचार्य भी अपने विद्यार्थियों से अपेक्षा रखते हैं कि उनकी बुद्धि कुशाग्र बने एवं वे परीक्षा में अच्छे परिणाम लायें ताकि समाज में उनकी संस्था का गौरव बढ़े। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण के दौर में विदेशी टी.वी. चैनलों, चलचित्रों, व्यसनों, अशुद्ध खान-पान आदि ने वातावरण इतना दूषित बना दिया है कि हमारे बच्चे अगर जीवन में अच्छे संस्कार पाना भी चाहें तो उन्हें ऐसी कोई राह ही नहीं दिखती, जिस पर चलकर वे सुसंस्कारी बालक बन सकें।
ऐसे समय में ब्रह्मनिष्ठ संत श्री आसाराम जी बापू के मार्गदर्शन से हो रही विभिन्न सेवा-प्रवृत्तियों द्वारा बच्चों को ओजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी बनाने हेतु भारतीय संस्कृति की अनमोल कुंजियाँ प्रदान की जा रही हैं। इन्हीं सत्प्रवृत्तियों में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं देश में व्यापक स्तर पर चल रहे बाल संस्कार केन्द्र।
बाल संस्कार केन्द्र माता पिता एवं गुरूजनों का आदर व आज्ञापालन जैसे उच्च संस्कार, प्राणायाम, योगासन, सूर्यनमस्कार, ध्यान, स्मरणशक्ति बढ़ाने की युक्तियाँ, बाल कथाएँ, पर्व-महिमा, देशभक्तों व संतों-महापुरूषों के दिव्य जीवनचरित्र बताना, श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोक, संतों द्वारा कही गयी साखियाँ, भिन्न-भिन्न स्पर्धाएँ, खेल, वार्षिकोत्सव आदि के द्वारा विद्यार्थियों की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करके उनके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक-सर्वांगीण विकास की कुंजियाँ प्रदान की जाती हैं। अभ्यासक्रम पूरा होने के बाद बालक को प्रमाणपत्र भी दिया जाता है।
अपने बालकों के उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु बालकों
में सुसंस्कार सिंचन करना हम सबका नैतिक कर्त्तव्य है।
पूज्य बापू जी

बाल्यकाल ही जीवन की नींव है और बालक-बालिकाएँ ही घर, समाज व देश की धरोहर हैं। नींव सँभली तो सब सँभला, बाल्यकाल को सँवारा तो समझो जीवन सँवरा। अतः बालकों में सुसंस्कारों का सिंचन करना हम सबका राष्ट्रीय कर्त्तव्य है।
जिस दीपक में तेल नहीं वह प्रकाशित नहीं हो सकता, इसी प्रकार जिस शरीर में संयम-बल नहीं, ओज-वीर्य नहीं, उसकी इन्द्रियों, मन, बुद्धि में विशेष निखार नहीं आ पाता। अतः हर व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह अपनी युवावस्था में संयम-सदाचारपूर्वक रहकर अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आत्मिक शक्ति का विकास करे।
भारत का सर्वांगीण विकास व उज्जवल भविष्य सुसंस्कारी बालकों व चारित्र्यवान एवं संयमी युवानों पर आधारित है। अपने देश के विद्यार्थियों में सुसंस्कार सिंचन हेतु, उनका विवेक जाग्रत करने हेतु एवं उनके जीवन को संयमी, सदाचारी, स्वस्थ व सुखी बनाकर उनके सुंदर भविष्य निर्माण हेतु परम पूज्य संत श्री आसाराम जी बापू के पावन प्रेरक मार्गदर्शन में देशभर में संस्कार सिंचन अभियान व्यापक रूप से चलाया जा रहा है।
संत श्री आसाराम जी आश्रम द्वारा बाल संस्कार व युवाधन सुरक्षा पुस्तकें आज लाखों विद्यार्थियों को सर्वांगीण विकास की कुंजियाँ प्रदान कर रही हैं। संस्कार सिंचन अभियान के अंतर्गत इन दो पुस्तकों को विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाता है। आप भी इस अभियान में, राष्ट्र-जागृति के दैवी कार्य में सहभागी होकर ऋषिज्ञान की पावन गंगा विद्यार्थियों के जीवन में बहायें।

कार्यप्रणाली
प्रार्थना (10 मिनट)- हरिनाम उच्चारणः हरि ॐ का 7 अथवा 11 बार दीर्घ उच्चारण करवायें। मंत्रोच्चारण। ॐ गं गणपतये नमः। ॐ श्री सरस्वत्यै नमः। ॐ श्री गुरूभ्यो नमः। इसके पश्चात गुरूवन्दना, सरस्वती वंदना करायें।
प्राणायाम (5 मिनट)- (भ्रामरी, अनुलोम, विलोम, ऊर्जायी) महत्त्व, विधि, प्रायोगिक प्रशिक्षण। बच्चों के लिए विशेष उपयोगी भ्रामरी प्राणायाम हर सत्र में 5-7 बार करवायें तथा इसे घर भी नियमित रूप से करने के लिए प्रेरित करें। अनुलोम-विलोम प्राणायाम और ऊर्जायी प्राणायाम का भी अभ्यास करवायें।
योगासन, सूर्यनमस्कार, मुद्राएँ (15 मिनट)- महत्त्व, विधि, प्रायोगिक प्रशिक्षण। आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों योगासन और बालसंस्कार से आसन, सूर्यनमस्कार एवं मुद्रायें सिखाएँ। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए 2 सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, शशांकासन, पादपश्चिमोत्तानासन एवं अंत में श्वासन नियमित रूप से करने जैसे हैं।
पर्व महिमा, ऋतुचर्या (10 मिनट)- विभिन्न पर्वों पर उनका सामाजिक, धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व कथासहित रूचिपूर्ण ढंग से बतायें। वर्त्तमान ऋतु के अनुसार बच्चों को जानकारी दें कि किस ऋतु में खान-पान, रहन सहन से सम्बन्धित क्या-क्या सावधानियाँ रखनी हैं, कौन-सा आहार स्वास्थ्य के लिए हितकारी है और कौन सा हानिकारक है।
श्लोक, स्तोत्रपाठ, साखियाँ, प्राणवान पंक्तियाँ (10 मिनट)- बाल संस्कार पुस्तक में से साखियाँ एवं प्राणायाम पंक्तियाँ सिखायें तथा साथ ही उनसे जुड़ी कुछ वार्ता अथवा कथा सुनायें एवं चर्चा करें। बालक इन्हें जीवन में गहरा उतार लें ऐसा प्रयास केन्द्र संचालक करें। श्रीमद् भगवद् गीता के 2-5श्लोकों का उच्चारण करवायें और अर्थ बतायें। गुर्वष्टकम का पाठ भी कंठस्थ करा सकते हैं।
कथा प्रसंग, अन्य महत्त्वपूर्ण विषय (25 मिनट)- देशभक्तों एवं संतों के प्रेरक जीवन-प्रसंग बताकर बच्चों को अपने जीवन में दिव्य गुण अपनाने की प्रेरणा दें।
सदगुण अपनोओः एकाग्रता, संयम, सत्यप्रियता, श्रद्धा, दया, परोपकार, धर्म-रक्षा, ब्रह्मचर्य, देशप्रेम, अडिगता, भक्ति, त्याग, सेवा, अहिंसा, ईमानदारी, सत्संग श्रवण आदि सदगुण कथाओं एवं प्रसंगों के द्वारा समझायें।
दुर्गुण त्यागोः दुर्गुणों से होने वाली हानि यथासंभव कथा द्वारा बतायें तथा दुर्व्यसनों के घातक प्रभाव पर प्रकाश डालकर बच्चों को उनसे सावधान करें। उन्हें अपने जीवन में कभी भी न अपनाने का संकल्प करायें।
सुषुप्त शक्तियाँ जगाने का प्रयोगः मौन, त्राटक, जप, ध्यान, संध्या-वंदन आदि।
शिष्टाचार के कुछ नियम, दिनचर्या, आदर्श बालक की पहचान, मातृ-पितृ भक्ति, सदगुरू-महिमा, मंत्र-महिमा, यौगिक चक्र, भारतीय संस्कृति की परंपराओं का महत्त्व, परीक्षा में सफलता कैसे पायें ? विद्यार्थी छुट्टियाँ कैसे मनायें ? जन्मदिन कैसे मनायें ?
प्रश्नोत्तरीः (10 मिनट)- कार्यक्रम के अंत में अथवा बीच-बीच में सिखाये हुए विषयों पर प्रश्न पूछें।
मनोरंजन के साथ ज्ञान (20 मिनट)- इसमें विभिन्न प्रकार के खेल, ज्ञानप्रद चुटकुले, पहेलियाँ, शौर्यगीत तथा भजन-कीर्तन के माध्यम से बच्चों का ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन भी करायें।
व्यक्तित्व-विकास के प्रयोग- वक्तृत्व स्पर्धा, लेखन स्पर्धा, चित्रकला प्रतियोगिता इत्यादि के द्वारा बालक की छुपी हुई योग्यता विकसित हो ऐसा प्रयास करें।
स्वास्थ्य संजीवनी (5 मिनट) ऋषि प्रसाद, लोक कल्याण सेतु, तथा आरोग्यनिधि 1, 2 से बालकोपयोगी स्वास्थ्यप्रद बातें, सरल व सचोट घरेलु नुस्खे बच्चों को बतायें।
आरती, प्रसाद-वितरण (10 मिनट)- पूज्य श्री की आरती तथा प्रसाद वितरण करके कार्यक्रम की पूर्णाहूति करें।
नोटः यह सारणी मार्गदर्शन हेतु है, आवश्यकतानुसार समय कम-ज्यादा कर सकते हैं। आश्रम द्वारा प्रकाशित हमारे आदर्श, तू गुलाब होकर महक, परम तप, जीवन विकास, मधुर व्यवहार, योगलीला, मन को सीख, नशे से सावधान, योगयात्रा-4, पुरूषार्थ परमदेव, यौवन-सुरक्षा- भाग 1 व 2 आदि पुस्तकों का अध्ययन करें। विद्यार्थियों से सम्बन्धित ऑडियो कैसेट विद्यार्थियों के लिए – भाग 1 से 5, भाग 6 से 10, विनोद में वेदान्त, बाल-भक्तों की कहानियाँ – भाग 1 व 2, ज्ञान के चुटकुले – भाग 1 व 2, सफलता के सूत्र, आदि का नित्य श्रवण करें तथा कभी-कभी इस कार्यक्रम में बच्चों को भी 15 से 20 मिनट तक पूज्यश्री का सत्संग सुनाकर प्रश्न पूछें। विद्यार्थियों के लिए भाग 1 से 5 विडियो सी.डी. भी दिखा सकते हैं।
उत्साही एवं जागरूक साधकों द्वारा किया गया प्रयास एवं उनकी निःस्वार्थ सेवापरायणता उन्हें इस दिशा में कार्यरत करके पूज्यश्री के दैवी कार्यों में सहभागी बनने का सुअवसर प्रदान कर रही है। तो आप भी इस सेवाकार्य में जुडकर हर घर हो बाल संस्कार केन्द्र अभियान में सम्मिलित होकर अपना तथा भारत के नौनिहालों, हमारे देश के इन भावी कर्णधारों का भविष्य उज्जवल बनायें।
अधिक जानकारी हेतु अहमादबाद आश्रम में संपर्क करें।

बाल संस्कार केन्द्र के 21 अनमोल रत्न
प्रतिदिन पालनीय नियम
1. सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठना।
2. प्रातः शुभ चिंतन, शुभ संकल्प, इष्टदेव अथवा गुरूदेव का ध्यान।
3. करदर्शन।
4. प्रार्थना, जप, ध्यान, आसन, प्राणायाम।
5. सूर्य को अर्घ्य एवं सूर्यनमस्कार।
6. तुलसी के 5 पत्तों का सेवन कर 1 गिलास पानी पीना।
7. माता-पिता एवं गुरूजनों को प्रणाम।
8. नियमित अध्ययन।
9. अच्छी संगत।
10. भोजन से पूर्व गीता के पंद्रहवें अध्याय का पाठ व सात्त्विक, सुपाच्य तथा स्वास्थ्कर भोजन।
11. त्रिकाल संध्या।
12. सत्शास्त्र-पठन और सत्संग-श्रवण।
13. सेवा, कर्त्तव्यपालन व परोपकार।
14. सत्य एवं मधुर भाषण, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना)।
15. समय का सदुपयोग।
16. परगुणदर्शन (दूसरों के अच्छे गुणों पर दृष्टि रखना)।
17. घरकाम में मदद और स्वच्छता।
18. खेलकूद।
19. त्राटक, मौन।
20. जल्दी सोना-जल्दी उठना।
21. सोने से पहले आत्मनिरीक्षण, ईश्वर-गुरूदेव का चिंतन, धन्यवाद।

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