पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Sunday, April 27, 2014

हे वीर आगे बढ़ो   पुस्तक से
जाग मुसाफिर जाग !

आदमी को लग जाय तो ऊँट की मौत भी उसमें वैराग्य जगा देती है, अन्यथा तो लोग रिश्तेदारों को जलाकर या दफनाकर आते हैं फिर भी उनके जीवन में वैराग्य नहीं जगता।

(पूज्य बापू जी की अमृतवाणी)

बल्ख बुखारा का शेख वाजिद अली 999 ऊँटों पर अपना बावर्चीखाना लदवाकर जा रहा था। रास्ता सँकरा था। एक ऊँट बीमार होकर मर गया। उसके पीछे आने वाले ऊँटों की कतार रूक गयी। यातायात बंद हो गया। शेख वाजिद ने कतार रूकने का कारण पूछा तो सेवक ने बतायाः "हुजूर ! ऊँट मर गया है। रास्ता सँकरा है। आगे नहीं जा सकते।"

शेख को आश्चर्य हुआः "ऊँट मर गया ! मरना कैसा होता है ?"

वह अपने घोड़े से नीचे उतरा। चलकर आगे आया। सँकरी गली में मरे हुए ऊँट को गौर से देखने लगा।

"अरे ! इसका मुँह भी है, गर्दन और पैर भी मौजूद हैं, पूँछ भी है, पेट और पीठ भी है तो यह मरा कैसे ?"

उस विलासी शेख को पता ही नहीं कि मृत्यु क्या चीज होती है ! सेवक ने समझायाः "जहाँपनाह ! इसका मुँह, गर्दन, पैर, पूँछ, पेट, पीठ आदि सब कुछ है लेकिन इसमें जो जीवतत्त्व था, उससे इसका संबंध टूट गया है। इसके प्राण-पखेरू उड़ गये हैं।"

"....तो अब य़ह नहीं चलेगा क्या ?"

"चलेगा कैसे ! यह सड़ जायेगा, गल जायेगा, मिट जायेगा, जमीन में दफन हो जायेगा या गीध, चीलें, कौवे, कुत्ते इसको खा जायेंगे।"

"ऐसा ऊँट मर गया ! मौत ऐसे होती है ?"

"हुजूर ! मौत अकेले ऊँट की ही नहीं  बल्कि सबकी होती है। हमारी भी मौत हो जायेगी।"

"......और मेरी भी ?"

"शाहे आलम ! मौत सभी की होती है।"

ऊँट की मृत्यु देखकर वाजिदअली के चित्त को झकझोरता हुआ वैराग्य का तुफान उठा। युगों से जन्मों से प्रगाढ़ निद्रा में सोया हुआ आत्मदेव अब ज्यादा सोना नहीं चाहता था। 999 ऊँटों पर अपना सारा रसोईघर, भोग-विलास की साधन-सामग्रियाँ लदवाकर नौकर-चाकर, बावर्ची, सिपाहियों के साथ जो जा रहा था, उस सम्राट ने उन सबको छोड़कर अरण्य का रास्ता पकड़ लिया। वह फकीर हो गया। उसके हृदय से आर्जवभरी प्रार्थना उठीः ʹहे खुदा ! हे परवरदिगार ! हे जीवनदाता ! यह शरीर कब्रिस्तान में दफनाया जाय, सड़ जाय, गल जाय, उसके पहले तू मुझे अपना बना ले मालिक !ʹ

शेख वाजिद के जीवन में वैराग्य की ज्योति ऐसी जली कि उसने अपने साथ कोई सामान नहीं रखा। केवल एक मिट्टी की हाँडी साथ में रखी। उसमें भिक्षा माँगकर खाता था, उसी से पानी पी लेता था, उसी को सिर का सिरहाना बनाकर सो लेता था। इस प्रकार बड़ी विरक्तता से वह जी रहा था।

अधिक वस्तुएँ पास रखने से वस्तुओं का चिंतन होता है, उनके अधिष्ठान आत्मदेव का चिंतन खो जाता है। साधक का समय व्यर्थ में चला जाता है।

एक बार वाजिदअली हाँडी का सिरहाना बनाकर दोपहर को सोया था। कुत्ते को भोजन की सुगंध आयी तो हाँडी को सूँघने लगा, मुँह डालकर चाटने लगा। उसका सिर हाँडी के सँकरे मुँह में फँस गया। वह ʹक्याऊँ...... क्याऊँ....ʹ करके हाँडी सिर के बल खींचने लगा। फकीर की नींद खुली। वह उठ बैठा तो कुत्ता हाँडी के साथ भागा। दूर जाकर पटका तो हाँडी फूट गयी। शेख वाजिद हँसने लगाः

"यह भी अच्छा हुआ। मैंने पूरा साम्राज्य छोड़ा, भोग-वैभव छोड़े, 999 ऊँट, घोड़े, नौकर-चाकर, बावर्ची आदि सब छोड़े और यह हाँडी ली। हे प्रभु ! तूने यह भी छुड़ा ली क्योंकि अब तू मुझसे मिलना चाहता है। प्रभु तेरी जय हो !

अब पेट ही हाँडी बन जायेगा और हाथ ही सिरहाने का काम देगा। जिस देह को दफनाना है, उसके लिए अब हाँडी भी कौन संभाले ! जिससे सब सँभाला जाता है, उसकी मुहब्बत को अब सँभालूँगा।"

आदमी को लग जाय तो ऊँट की मौत भी उसमें वैराग्य जगा देती है, अन्यथा तो कम्बख्त लोग अब्बाजान को दफनाकर घर आकर  सिगरेट सुलगाते हैं। अभागे लोग अम्मा को, बीबी को,रिश्तेदारों को कब्रिस्तान में पहुँचाकर वापस आकर वाइन (शराब) पीते हैं। ऐसे क्रूर लोगों के जीवन में वैराग्य नहीं जगता। पापों के कारण मन ईश्वर-चिंतन में, रामनाम में न लगता हो तो भी रामनाम जपते जाओ, सत्संग सुनते जाओ, ईश्वर चिंतन में मन लगाते जाओ। इससे पाप कटते जायेंगे और भीतर का ईश्वरीय आनंद प्रकट होता जायेगा।

अभागा तो मन है, आप अभागे नहीं हो। आप सब पवित्र हो, भगव्तस्वरूप हो। आपका पापी, अभागा मन अगर आपको भीतर का रस न भी लेने दे, तो भी राम-राम, हरि ૐ, शिव-शिव आदि भगवन्नाम के जप में, कीर्तन में, ध्यान-भजन में, संत-महात्मा के सत्संग समागम में बार-बार जाकर हरि रसरूपी मिश्री चूसते रहो। इससे पापरूपी सूखा रोग मिटता जायेगा और हरिरस की मधुरता हृदय में प्रकट होती जाय़ेगी। आपका बेड़ा पार हो जायेगा।

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