पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Wednesday, March 5, 2014

तेजस्वी बनो 

भाग्य निर्मात्री मंत्रशक्ति
जैसे पानी की एक बूँद को वाष्प बनाने से उसमें 1300 गुनी ताकत आ जाती है, वैसे ही मंत्र को जितनी गहराई से जपा जाता है, उसका प्रभाव उतना ही ज्यादा होता है।

सदगुरु से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा प्राप्त करने से एवं उसका श्रद्धापूर्वक जप करने से विद्यार्थियों की चंचलता दूर होती है, उनके जीवन में संयम आता है तथा वे अपनी कुशाग्र बुद्धि को चमत्कारिक रूप से मेधा व प्रज्ञा बनाकर इहलोक में तो सफलता के शिखर को छू सकते हैं, साथ ही आत्मा-परमात्मा का सामर्थ्य भी पा सकते हैं। बौद्धिक जगत के बादशाह कहलाने वाले बीरबल की बुद्धि एवं चातुर्य के पीछे भी सारस्वत्य मंत्र का ही प्रभाव था।

आज के भौतिकवादी युग में यंत्रशक्ति जितनी अधिक प्रभावी हो सकती है, उससे कहीं अधिक प्रभावी एवं सूक्ष्म मंत्रशक्ति होती है। इसी मंत्रशक्ति का रहस्य जानने वाले अर्जुन सशरीर स्वर्ग में गये थे और वहाँ से दिव्य अस्त्र लाये थे।

मंत्रशक्ति की महिमा को जानकर उसका लाभ उठाने वाले कई महापुरुष आज विश्व में आदरणीय एवं पूजनीय स्थान प्राप्त कर चुके हैं। जैसे – आद्य शंकराचार्यजी, कबीर जी, नानकजी, स्वामी विवेकानंद, श्री रामकृष्ण परमहंस, महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, स्वामी रामतीर्थ, श्री लीलाशाहजी महाराज, पूज्य बापू जी आदि-आदि। सती अनसूया ने मंत्रशक्ति से ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश को दूध पीते बच्चे बना दिया था।

आप भी मंत्रशक्ति का पूरा लाभ लेने हेतु पहुँच जाइये किन्हीं समर्थ सदगुरु के सत्संग-सान्निध्य में, सारस्वत्य मंत्रदीक्षा प्राप्त करके तेजस्वी जीवन की ओर कदम बढ़ाइये। कदम अपना आगे बढ़ाता चला जा.... युवा वीर है दनदनाता चला जा, भारत का वीर है दनदनाता चला जा, कदम....

आवश्यक है शिक्षा के साथ दीक्षा
जितना जितना आध्यात्मिक बल बढ़ता है, उतनी-उतनी भौतिक वस्तुएँ खिंचकर आती हैं और प्रकृति अनुकूल हो जाती है।

एक होती है शिक्षा, दूसरी होती है दीक्षा। स्कूल कालेजों में मिलने वाली शिक्षा ऐहिक वस्तुओं का ज्ञान देती है। शरीर का पालन पोषण करने के लिए इस शिक्षा की आवश्यकता है। यह शिक्षा अगर दीक्षा से रहित होती है तो विनाशक भी हो सकती है। शिक्षित आदमी समाज को जितनी हानि पहुँचा सकता है, उतनी अशिक्षित आदमी नहीं पहुँचा सकता। साथ-ही-साथ, शिक्षित आदमी अगर सेवा करना चाहे तो अशिक्षित आदमी की अपेक्षा ज्यादा कर सकता है। देख लो रावण का जीवन, कंस का जीवन। उनके जीवन में तो शिक्षा तो है लेकिन आत्मज्ञानी गुरुओं की दीक्षा नहीं है। अब देखो, राम जी का जीवन, श्रीकृष्ण का जीवन। शिक्षा से पहले उन्हें दीक्षा मिली है। ब्रह्मवेत्ता सदगुरु से दीक्षित होने के बाद उनकी शिक्षा का प्रारम्भ हुआ है। जनक के जीवन में शिक्षा और दीक्षा दोनों हैं तो सुन्दर राज्य किया है।

गुरु अमृत की खान
जिसके मुख में गुरु मंत्र है उसके सब कर्म सिद्ध होते हैं, दूसरे के नहीं। दीक्षा के कारण शिष्य के सर्व कार्य सिद्ध हो जाते हैं। - भगवान शिवजी।

उद्धव ! तुम गुरुदेव की उपासना रूप अनन्य भक्ति के द्वारा अपने ज्ञान की कुल्हाड़ी को तीखी कर लो और उसके द्वारा धैर्य एवं सावधानी से जीवभाव को काट डालो। - भगवान श्रीकृष्ण।

मन के शिकंजे से छूटने का सबसे सरल और श्रेष्ठ उपाय यह है कि आप किसी समर्थ सदगुरु के सान्निध्य में पहुँच जायें। - साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

सिर दीजै सदगुरु मिले, तो भी सस्ता जान।। - संत कबीर जी।

यदि तुम गुरु वाक्य पर बालक की भाँति विश्वास करो तो तुम ईश्वर को पा जाओगे। - श्री रामकृष्ण परमहंस।

भगवान, गुरु और आत्मा एक ही है। - श्री रमण महर्षि।

बारह कोस चलकर जाने से भी यदि ऐसे महापुरुष के दर्शन मिलते हों तो मैं पैदल चलकर जाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि ऐसे ब्रह्म वेत्ता महापुरुष के दर्शन से कैसा आध्यात्मिक खजाना मिलता है वह मैं अच्छी प्रकार से जानता हूँ। - स्वामी विवेकानंद

ऐसे गुरुदेव का ऋण मैं किस प्रकार चुका सकता हूँ जिन्होंने मुझे फिर से जन्म नहीं लेना पड़े – ऐसी कृपा मुझ पर कर दी।  - संत नामदेव जी महाराज।

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