पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Monday, May 20, 2013


दैवी संपदा पुस्तक से - Daivi Sampada pustak se

ज्ञानयोग

श्री योगवाशिष्ठ महारामायण में 'अर्जुनोपदेश' नामक सर्ग में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
"हे भारत ! जैसे दूध में घृत और जल में रस स्थित होता है वैसे ही सब लोगों के हृदय में तत्त्व रूप से स्थित हूँ। जैसे दूध में घृत स्थित है वैसे ही सब पदार्थों के भीतर मैं आत्मा स्थित हूँ। जैसे रत्नों के भीतर-बाहर प्रकाश होता है वैसे ही मैं सब पदार्थों के भीतर-बाहर स्थित हूँ। जैसे अनेक घटों के भीतर-बाहर एक ही आकाश स्थित है वैसे ही मैं अनेक देहों में भीतर बाहर अव्यक्त रूप स्थित हूँ।"
जैसे आकाश में सब व्याप्त है वैसे मैं चिदाकाश रूप में सर्वत्र व्याप्त हूँ। बन्धन और मुक्ति दोनों प्रकृति में होते हैं। पुरुष को न बन्धन है न मुक्ति है। जन्म-मृत्यु आदि जो होता है वह सब प्रकृति में खेल हो रहा है। पानी में कुछ नहीं, तरंगों में टकराव है। आकाश में कुछ नहीं, घड़ों में बनना बिगड़ना होता है।
तुम चिदघन चैतन्य आत्मा हो। जैसे दूध में घी होता है, मिठाई में मिठाश होती है, तिलों में तेल होता है ऐसे ही चैतन्य सर्वत्र व्याप्त होता है, सबमें ओतप्रोत है। तिलों में से तेल निकाल दो तो तेल अलग और फोतरे अलग हो जाएँगे लेकिन चैतन्य में ऐसा नहीं है। जगत में से ब्रह्म अलग निकाल लो, ऐसा नहीं है। तिलों में से तो तेल निकल सकता है लेकिन जगत में से ब्रह्म नहीं निकल सकता।
जैसे जगत में से आकाश नहीं निकल सकता ऐसे ही आकाश में से भी चिदाकाश नहीं निकल सकता। यह चिदाकाश ही परमात्म-तत्त्व है। वही हर जीव का अपना आपा है लेकिन जीव 'मैं' और 'मेरा' करके इन्द्रियों के राज्य में भटक गया है इसलिए जन्म-मरण हो रहा है। नहीं तो जर्रा-जर्रा खुदा है। खुदा की कसम, जर्रा-जर्रा खुदा है। कोई उससे जुदा नहीं है।

सब घट मेरा साँईया खाली घट ना कोय।
बलिहारी वा घट की जा घट परगट होय।।
कबीरा कुँआ एक है पनिहारि अनेक।
न्यारे न्यारे बर्तनों में पानी एक का एक।।

ज्ञानयोग में निष्ठुर होकर ज्ञान का विचार करें। वहाँ लिहाज नहीं करना है। श्रद्धा करें, उपासना करें तो अन्धा होकर श्रद्धा करें। उपासना में अन्धश्रद्धा चाहिए, गहरी श्रद्धा चाहिए। श्रद्धा में विचार की जरूरत नहीं है, अन्यथा श्रद्धा तितर-बितर हो जायेगी। है तो पत्थर, है तो शालिग्राम लेकिन भगवान है। वहाँ विचार मत करो। है तो मिट्टी का पिंड, लेकिन दृढ़ भावना रखो कि शिवलिंग है, साक्षात भगवान शिव हैं। श्रद्धा में विचार को मत आने दो।
हम लोग क्या करते हैं? श्रद्धा में विचार घुसेड़ देते हैं.... विचार में श्रद्धा घुसेड़ देते हैं। नहीं...। जब आत्मविचार करो तब निष्ठुर होकर करो। 'जगत कैसे बना ? ब्रह्म क्या है ? आत्मा क्या है ? मैं आत्मा कैसे ?' कुतर्क तो नहीं लेकिन तर्क अवश्य करो। 'तर्क्यताम्... मा कुतर्क्यताम्।' विचार करो तो निष्ठुर होकर करो और श्रद्धा करो तो बिल्कुल अन्धे होकर करो। अपने निश्चय में अडिग। चाहे कुछ भी हो, सारी दुनिया, सारी खुदाई एक तरफ हो लेकिन मेरा इष्ट, मेरा खुदा, मेरा भगवान अनन्य है, मेरे गुरु का वचन आखिरी है।

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।

श्रद्धा करो तो ऐसी। विचार करो तो निष्ठुर होकर। श्रद्धालु अगर कहे किः 'अच्छा ! मैं सोचूँगा.... विचार करूँगा....' तो 'मैं' बना रहेगा, फिर रोता रहेगा।
कर्म करो तो एकदम मशीन होकर करो। मशीन कर्म करती है, फल की इच्छा नहीं करती। वह तो धमाधम चलती है। यंत्र की  पुतली की तरह कर्म करो। काम करने में ढीले न बनो। झाड़ू लगाओ तो ऐसा लगाओ कि कहीं कचरा रह न जाय। रसोई बनाओ तो ऐसी बनाओ कि कोई दाना फालतू न जाय, कोई तिनका बिगड़े नहीं।  कपड़ा धोओ तो ऐसा धोओ कि साबुन का खर्च व्यर्थ न हो, कपड़ा जल्दी न फटे फिर भी चमाचम स्वच्छ बन जाय। कर्म करो तो ऐसे सतर्क होकर करो। ऐसा कर्मवीर जल्दी सफल जो जाता है। हम लोग थोड़े कर्म में, थोड़े आलस्य में, थोड़े Dull थोड़े Lazy थोड़े पलायनवादी होकर रह जाते हैं। न ही इधर के रहते हैं नहीं उधर के।

कर्म करो तो बस, मशीन होकर, बिल्कुल सतर्कता से, Up-to-date काम करो।
प्रीति करो तो बस, लैला मजनूँ की तरह।
एक बार लैला भागी जा रही थी। सुना था कि मजनूँ कहीं बैठा है। मिलन के लिए पागल बनकर दौड़ी जा रही थी। रास्ते में इमाम चद्दर बिछाकर नमाज पढ़ रहा था लैला उसकी चद्दर पर पैर रखकर दौड़ गई। इमाम क्रुद्ध हो गया। उसने जाकर बादशाह को शिकायत कीः "मैं खुदा की बन्दगी कर रहा था.... मेरी चद्दर बिछी थी उस पर पैर रखकर वह पागल लड़की चली गई। उसने खुदाताला का और खुदा की बन्दगी करने वाले इमाम का, दोनों का अपमान किया है। उसे बुलाकर सजा दी जाय।"
इमाम भी बादशाह का माना हुआ था। बादशाह ने लैला को बुलाया, उसे डाँटते हुए कहाः
"मूर्ख पागल लड़की ! इमाम चद्दर बिछाकर खुदाताला की बन्दगी कर रहा था और तू उसकी चद्दर पर पैर रखकर चली गई ? तुझे सजा देनी पड़ेगी। तूने ऐसा क्यों किया ?"
"जहाँपनाह ! ये बोलते हैं तो सही बात होगी कि मैं वहाँ पैर रखकर गुजरी होऊँगी लेकिन मुझे पता नहीं था। एक इन्सान के प्यार में मुझे यह नहीं दिखा लेकिन ये इमाम सारे जहाँ के मालिक खुदाताला के प्यार में निमग्न थे तो इनको मैं कैसे दिख गई ? मजनूँ के प्यार में मेरे लिए सारा जहाँ गायब हो गया था जबकि इमाम सारे जहाँ के मालिक खुदाताला के प्यार में निमग्न थे तो इनको मैं कैसे दिख गई ? मजनूँ के प्यार में मेरे लिये सारा जहाँ गायब हो गया था जबकि इमाम सारे जहाँ के मालिक से मिल रहे थे फिर भी उन्होंने मुझे कैसे देख लिया ?"
बादशाह ने कहाः "लैला ! तेरी मजनूँ में प्रीति सच्ची और इमाम की बन्दगी कच्ची। जा तू मौज कर।"
श्रद्धा करो तो ऐसी दृढ़ श्रद्धा करो। विश्वासो फलदायकः।

आत्मविचार करो तो बिल्कुल निष्ठुर होकर करो। उपासना करो तो असीम श्रद्धा से करो। कर्म करो तो बड़ी तत्परता से करो, मशीन की तरह बिल्कुल व्यवस्थित और फलाकांक्षा से रहित होकर करो। भगवान से प्रेम करो तो बस, पागल लैला की तरह करो, मीरा की तरह करो, गौरांग की तरह करो।

गौरांग की तरह कीर्तन करने वाले आनंदित हो जाते हैं। तुमने अपनी गाड़ी का एक पहिया ऑफिस में रख दिया है, दूसरा पहिया गोदाम में रखा है। तीसरा पहिया पंक्चरवाले के पास पड़ा है। स्टीयरिंग व्हील घर में रख दिया है। इंजिन गेरेज में पड़ा है। अब बताओ, तुम्हारी गाड़ी कैसी चलेगी?
ऐसे ही तुमने अपनी जीवन-गाड़ी का एक पुर्जा शत्रु के घर रखा है, एक पुर्जा मित्र के घर रखा है, दो पुर्जे फालतू जगह पर रखे हैं। तो यह गाड़ी कैसी चलेगी यह सोच लो। दिल का थोड़ा हिस्सा परिचितों में, मित्रों में बिखेर दिया, थोड़ा हिस्सा शत्रुओं, विरोधियों के चिन्तन में लगा दिया, थोड़ा हिस्सा ऑफिस में में, दुकान में रख दिया। बाकी दिल का जरा सा हिस्सा बचा उसका भी पता नहीं कि कब कहाँ भटक जाय ? बताओ, फिर उद्धार कैसे हो?

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