पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Sunday, February 24, 2013

हमें लेने हैं अच्छे संस्कार

आदर्श दिनचर्या

जीवन विकास और सर्व सफलताओं की कुंजी है एक सही दिनचर्या। सही दिनचर्या द्वारा समय का सदुपयोग करके तन को तंदरूस्त, मन को प्रसन्न एवं बुद्धि को कुशाग्र बनाकर बुद्धि को बुद्धिदाता की ओर लगा सकते हैं।

ब्राह्ममुहूर्त में जागरण
प्रातः 4.30 बजे से 5 बजे के बीच उठें, लेटे-लेटे शरीर को खींचें। कुछ समय बैठकर ध्यान करें। शशक आसन करते हुए इष्टदेव, गुरुदेव को नमन करें।
करदर्शनः दोनों हाथों के दर्शन करते हुए यह श्लोक बोलें।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।
देवमानव हास्य प्रयोगः तालियाँ बजाते हुए तेजी से भगवन्नाम लेकर दोनों हाथ ऊपर उठाकर हँसें।
भूमिवंदनः धरती माता को वंदन करें और यह श्लोक बोलें।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

पानी प्रयोगः सुबह खाली पेट एक अथवा दो गिलास रात का रखा हआ पानी पियें।

शौच विज्ञानः स्नान करते समय यह मंत्र बोलें। ૐ ह्रीं गंगायै। ૐ ह्रीं स्वाहा।
ऋषि स्नानः ब्राह्म मुहूर्त में। मानव स्नानः सूर्योदय से पूर्व। दानव स्नानः सूर्योदय के बाद चाय, नाश्ता लेकर 8-9 बजे।
शौच जाते समय कानों तथा सिर पर कपड़ा बाँधें, दाँत भींचकर मल त्याग करें। शौच के समय पहने हुए कपड़े शौच के बाद धो लें।

दंत सुरक्षाः नीम की दातुन अथवा आयुर्वैदिक मंजन से दाँत साफ करें।

स्नानः ठंडे पानी से नहा रहे हों तो सर्वप्रथम सिर पर पानी डालें। रगड़-रगड़कर स्नान करें।

हमें भी सुसंस्कारी जीवन जीना है।

ईश्वर उपासना
"हे विद्यार्थी ! ईश्वरप्राप्ति का लक्ष्य बना लो। बार-बार सत्संग का आश्रय लो, ईश्वर का नाम लो, उसका गुणगान करो, उसको प्रीति करो। और कभी फिसल जाओ तो आर्तभाव से पुकारो। वे परमात्मा-अंतरात्मा सहाय करते हैं, बिल्कुल करते हैं।" – पूज्य बापू जी।
आरतीः हमें यह अनमोल जीवन ईश्वरकृपा से मिला है। अतः आप रोज के 24 घंटों में से कम-से-कम एक घंटा ईश्वर-उपासना के लिए दें। प्रातः शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर सर्वप्रथम भ्रूमध्य में तिलक करें। तत्पश्चात प्राणायाम, प्रार्थना, जप-ध्यान, सरस्वती उपासना, त्राटक, शुभ संकल्प, आरती आदि करें।
ये भी करें
नियमित रूप से व्यायाम, योगासन एवं सूर्योपासना करें।
5-7 तुलसी के पत्ते चबाकर एक गिलास पानी पियें।
माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम करें। हलका-पौष्टिक नाश्ता करें या दूध (गोदुग्ध) पियें।
प्रतिदिन विद्यालय जायें और एकाग्रतापूर्वक पढ़ाई करें।

हमें भी फूल की तरह महकना है।

भोजन प्रसाद
हाथ पैर धोकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मौनपूर्वक भोजन करें।
स्वास्थ्यकारक, सुपाच्य व सात्त्विक आहार लें।
बाजारू चीज-वस्तुएँ न खायें।
भोजन से पूर्वः इस श्लोक का उच्चारण करें-
हरिर्दाता हरिर्भोक्ता हरिरन्नं प्रजापतिः।
हरिः सर्वशरीररथो भुक्ते भोजयते हरिः।।
श्रीमद् भगवद् गीता के पन्द्रहवें अध्याय का पाठ अवश्य करें।
इन मंत्रों से प्राणों को 5 आहूतियाँ अर्पण करें।
ૐ प्राणाय स्वाहा।
ૐ अपानाय स्वाहा।
ૐ व्यानाय स्वाहा।
ૐ उदानाय स्वाहा।
ૐ समानाय स्वाहा।

अध्ययनः
विद्या ददाति विनयम्।
ʹविद्या से विनयशीलता आती है।ʹ
सर्वप्रथम हाथ-पैर-धोकर, तिलक कर ʹहरि ૐʹ का उच्चारण करें। अब शांत होकर निश्चिंत होकर पढ़ने बैठें।
अध्ययन के बीच-बीच में एवं अंत में शांत हों और पढ़े हुए का मनन करें।
कमर सीधी रखें। मुख ईशान कोण (पूर्व और उत्तर के बीच) की दिशा में हो।
जीभ की नोक को तालु में लगाकर पढ़ने से पढ़ा हुआ जल्दी याद होता है।
खेलकूद के बाद नियत समय पर पढ़ाई करें।
संध्याकाल में प्राणायाम, जप, ध्यान व त्राटक करें।
सदग्रंथों का नियमित पठन करें।

हमें भी उच्च शिक्षा प्राप्त करनी है।

शयन
सोने से पहलेः सत्संग की पुस्तक, सत्शास्त्र पढ़ें अथवा कैसेट या सीडी सुनें।
ईश्वर या गुरुमंत्र से प्रार्थना तथा ध्यान करके सोयें।
सिर पूर्व या दक्षिण की ओर हो।
मुँह ढककर न सोयें।
जल्दी सोयें, जल्दी उठें।
श्वासोच्छवास की गिनती करते हुए सीधा (मुँह ऊपर की ओर करके) सोयें। फिर जैसी आवश्यकता होगी वैसे स्वाभाविक करवट ले ली जायेगी।

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