पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Wednesday, September 26, 2012

प्रेरणा ज्योत पुस्तक से

वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य बनी पूज्य संत श्री आशारामजी की आभा

हरेक व्यक्ति के शरीर से एक आभा (ओरा) निकलती है। अब विज्ञान ने इसको मापने के लिए विशेष प्रकार के कैमरे व यंत्र विकसित कर लिये हैं। विश्वप्रसिद्ध आभा विशेषज्ञ डॉ. हीरा तापड़िया ने विश्वप्रसिद्ध संत श्री आशारामजी बापू का आभा चित्र खींचा तो वे आश्चर्यचकित रह गये। डॉ. तापड़िया कहते हैं-
"मैंने अब तक लगभग सात लाख से भी ज्यादा लोगों की आभा ली है, जिनमें एक हजार विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं जैसे बड़े संत, साध्वियाँ, प्रमुख व्यक्ति आदि।

संत श्री आशारामजी की आभा का अध्ययन कर मैंने पाया कि वह इतनी अधिक प्रभावशाली है कि कोई भी उनके पास आयेगा तो वह उनकी आभा से अभिभूत हो जायेगा, उनकी आभा के प्रभाव में रहेगा।
बापूजी की आभा में बैंगनी (वायलट रंग) है, जो यह दर्शाता है कि बापू जी आध्यात्मिकता के शिरोमणि हैं। यह सिद्ध ऋषि मुनियों में ही पाया जाता है। लालिमा यह दर्शाती है कि बापू जी शक्तिपात करते हैं, दूसरों की क्षीणता को पूर्णतः हर लेते हैं तथा अपनी शक्ति देते हैं। आसमानी रंग  उन्नत ऊँचाइयों में रहने वाली बापू जी की आभा का परिचायक है।

बापू जी का आभा में यह प्रमुखता मैंने पायी कि वे सम्पर्क में आये व्यक्ति की ऋणात्मक ऊर्जा को ध्वस्त कर धनात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं। बापूजी की आभा की एक खासियत यह भी है कि वे दूर से किसी को भी शक्ति दे सकते हैं। बापू जी के सत्संग में जब मैं गया था तो वहाँ जाँच करने पर मैंने देखा कि बापूजी की आभा अपने-आप रबड़ की तरह खिंचकर खूब लम्बी हो जाती है और वहाँ उपस्थित समूची भीड़ पर छा जाती है।

बापूजी की आभा देखकर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ क्योंकि लगातार पिछले कम-से-कम दस जन्मों से बापू जी की समाजसेवा का यह पुनीत कार्य करते आ रहे हैं, जैसे – लोगों पर शक्तिपात करके उन्हें आध्यात्मिकता में लगाना, व्यसनमुक्त करना, स्वस्थ करना, समाज की बुराइयों को दूर करना, ज्ञानामृत बाँटना, आनंद बरसाना आदि। मुझे पिछले दस जन्मों तक का ही पता चल पाया, उसके पहले का पढ़ने की क्षमता मशीन में नहीं थी।
आज तक जितने भी लोगों की आभाएँ मैंने ली हैं, किसी को भी इतना उन्नत नहीं पाया है।"

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