पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Friday, September 7, 2012


बाल संस्कार केन्द्र कैसे चलायें  पुस्तक से - Bal Sanskar Kender kaise chalaye

प्रार्थना का प्रभाव - Prarthna Ka Prabhav

श्री लीलारामजी का जन्म जिस गाँव में हुआ था, वह महराब चांडाई नामक गाँव बहुत छोटा था। उस ज़माने में दुकान में बेचने के लिए सामान टँगेबाग से ताँगे द्वारा लाना पड़ता था। भाई लखुमल वस्तुओं की सूचि एवं पैसे देकर श्री लीलाराम जी को खरीदारी करने के लिए भेजते थे।

एक समय की बात हैः उस वर्ष मारवाड़ एवं थर में बड़ा भारी अकाल पड़ा था। लखुमल ने पैसे देकर श्री लीलारामजी को दुकान के लिए खरीदारी करने को भेजा। श्री लीलारामजी खरीदारी करके माल-सामान की दो बैलगाड़ियाँ भर अपने गाँव लौट रहे थे। गाड़ियों में आटा, दाल, चावल, गुड़, घी आदि था। रास्ते में एक जगह पर गरीब, अकाल-पीड़ित, अनाथ एवं भूखे लोगों ने श्री लीलाराम जी को घेर लिया। दुर्बल एवं भूख से व्याकुल लोग अनाज के लिए गिड़गिड़ाने लगे तो श्री लीलारामजी का हृदय पिघल उठा। वे सोचने लगे, ‘इस माल को मैं भाई की दुकान पर ले जाऊँगा। वहाँ से इसे खरीदकर भी मनुष्य ही खायेंगे न...? ये सब भी तो मनुष्य ही हैं। बाकी बची पैसे के लेन-देन की बात.. तो प्रभु के नाम पर भले ये लोग ही खा लें।’
श्री लीलारामजी ने बैलगाड़ियाँ खड़ी करवायीं और उन क्षुधापीड़ित लोगों से कहाः "यह रहा सब सामान। तुम लोग इसमें से भोजन बनाकर खा लो।

भूख से कुलबुलाते लोगों ने तो तुरंत ही दोनों बैलगाड़ियों को खाली कर दिया। श्री लीलारामजी भय से काँपते, थरथराते गाँव में पहुँचे। खाली बोरों को गोदाम में रख दिया। कुंजियाँ लखुमल के दे दीं। लखुमल ने पूछाः
"माल लाया?"
"हाँ।"
"कहाँ है?"
"गोदाम में।"
"अच्छा बेटा! जा, तू थक गया होगा। सामान का हिसाब कल देख लेंगे।"

दूसरे दिन श्री लीलारामजी दूकान पर गये ही नहीं। उन्हें तो पता था कि गोदाम में क्या माल रखा है। वे घबराये काँपने लगे। उनको काँपते देखकर लखुमल ने कहाः "अरे! तुझे तो बुखार आ गया? आज घर पर ही आराम कर।"

एक दिन... दो दिन... तीन दिन... श्री लीलारामजी बुखार के बहाने दिन बिता रहे हैं और भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं- "हे भगवान! अब तो तू ही जान। मैं कुछ नहीं जानता। हे करन-करावनहार स्वामी! तू ही सब कराता है। तूने ही भूखे लोगों को खिलाने की प्रेरणा दी। अब सब तेरे ही हाथ में है, प्रभु! तू मेरी लाज रखना। मैं कुछ नहीं, तू ही सब कुछ है..... "
एक दिन शाम को लखुमल अचानक श्री लीलारामजी के पास आये और बोलेः "लीला....लीला! तू कितना अच्छा माल लेकर आया है।"
श्री लीलारामजी घबराये। काँप उठे कि ‘अच्छा माल.... अच्छा माल.... कहकर अभी मेरा कान पकड़कर मारेंगे।’ वे हाथ जोड़ कर बोलेः
"मेरे से गलती हो गयी।"
"नहीं बेटा! गलती नहीं हुई। मुझे लगता था कि व्यापारी तुझे कहीं ठग न लें। ज़्यादा कीमत पर घटिया माल न पकड़ा दें किंतु सभी चीजें बढ़िया हैं। पैसे तो नहीं खूटे न?"
"नहीं पैसे तो पूरे हो गये और माल भी पूरा हो गया।"
"माल किस तरह से पूरा हो गया?"
श्री लीलारामजी जवाब देने में घबराने लगे तो लखुमल ने कहाः "नहीं बेटा! सब ठीक है। चल तुझे दिखाऊँ।"
ऐसा कहकर लखुमल श्री लीलारामजी का हाथ पकड़कर गोदाम में ले गये। श्री लीलाराम जी ने वहाँ जाकर देखा तो सभी बोरे माल-सामान से भरे हुए मिले! वे भावविभोर हो उठे और गदगद होते हुए उन्होंने परमात्मा को धन्यवाद दियाः ‘प्रभु! तू कितना दयालु है... कितना कृपालु है!’

परोपकारी व्यक्ति का परमात्मा अवश्य मदद करते हैं। निर्दोष भाव से हृदयपूर्वक की गयी प्रार्थना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं, बिगड़े काम भी सँवर जाते हैं।

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