पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Monday, November 7, 2011


सत्संग अमृत  पुस्तक से - Satsang Amrit pustak se

नाव पानी में रहे, पानी नाव में नहीं... - Naav pani me rahe, Pani naav me nahi...


सुबह नींद में से उठ के श्वास गिनो और शांत हो जाओ। अपने परमात्मा में, आत्मा मे ही खुश रहना। 'मेरा पैसा कहाँ है ? मेरा छोरा कहाँ है ?' नश्वर दुनिया की चीजों की क्या इच्छा करना ! 'मैं अमर आत्मा हूँ। शरीर मरेगा, मैं तो अपने-आप में मस्त हूँ। मुझे मारे ऐसी कोई तलवार नहीं, कोई मौत नहीं। अमर आत्मा के आगे तो मौत की मौत हो जाये। मैं तो अमर आत्मा हूँ। ॐ....हरिॐ....ॐ....' – इस प्रकार अमर आत्मा का विचार करे तो अमर आत्मा को पायेगा और बेट-बेटी का विचार करे, नाती-पोते का विचार करे तो अंत में उन्हीं की याद आयेगी और वहीं जन्मेगा।
भगवान ने गीता में कहा हैः
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तदभावभावितः।।
' हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस उस को ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।' (8.6)
एक बार संत कबीर जी ने एक किसान से कहाः "तुम सत्संग में आया करो।"
किसान बोलाः "हाँ महाराज ! मेरे लड़के की सगाई हो गयी है, शादी हो जाये फिर आऊँगा।"
लड़के की शादी हो गयी। कबीर जी बोलेः "अब तो आओ।"
"मेहमान आते जाते हैं। महाराज ! थोड़े दिन बाद आऊँगा।"
ऐसे दो साल बीत गये। बोलेः "अब तो आओ।"
"महाराज ! मेरी बहू है न, वह माँ बनने वाली है। मेरा छोरा बाप बनने वाला है। मैं दादा बनने वाला हूँ। घऱ में पोता आ जाय, फिर कथा में आऊँगा।"
पोता हुआ। "अब तो सत्संग में आओ।"
"अरे महाराज ! आप मेरे पीछे क्यों पड़े हैं ? दूसरे नहीं मिलते हैं क्या ?"
कबीर जी ने हाथ जोड़ लिये। कुछ वर्ष के बाद कबीरजी फिर गये, देखा कि कहाँ गया वह खेतवाला ? दुकानें भी थीं, खेत भी था। लोग बोलेः "वह तो मर गया !"
"मर गया।"
"हाँ।"
मरते-मरते वह सोच रहा था कि 'मेरे खेत का क्या होगा, दुकान का क्या होगा ?' कबीर जी ने ध्यान लगा के देखा कि दुकान में चूहा बना है कि खेत में बैल बना है ? देखा कि अरहट में बँधा है, बैल बन गया है। उसके पहले हल में जुता था, फिर गाड़ी में जुता। अब बूढ़ा हो गया है। कबीर जी थोड़े-थोड़े दिन में आते जाते रहे। फिर उस बूढ़े बैल को, अब काम नहीं करता इसलिए तेली के पास बेच दिया गया। तेली ने भी काम लिया फिर बेच दिया कसाई को और कसाई ने 'बिस्मिल्लाह !' करके छुरा फिरा दिया। चमड़ा उतार के नगाड़ेवाला को बेच दिया और टुकड़े-टुकड़े कर के मांस बेच दिया।
कबीर जी ने साखी बनायीः
कथा में तो आया नहीं, मरकर
बैल बने हल में जुते, ले गाड़ी में दीन।
हल नहीं खींच सका तो गाड़ी, छकड़े को खींचने में लगा दिया।
तेली के कोल्हू रहे, पुनि घर कसाई लीन।
मांस कटा बोटी बिकी, चमड़न मढ़ी नगार।
कुछ एक कर्म बाकी रहे, तिस पर पड़ती मार।।
नगारे पर डंडे पड़ रहे हैं। अभी कर्म बाकी हैंतो उसे डंडे पड़ रहे हैं। मेरा बेटा कहाँ है ? मेरी बेटी कहाँ है ?....' डंडे पड़ेंगे फिर। 'मेरा परमात्मा कहाँ है ? अमर आत्मा कहाँ है ? यह तो मरने वाला शरीर मर रहा है, सपने जैसा है। कई बेटे-बेटी सपना हो गये, संसार सपना हो रहा है लेकिन जो बचपन में मेरे साथ था, शादी में साथ था, बुढ़ापे में साथ है, मरने के बाद भी जो साथ नहीं छोड़ेगा वह मेरा प्रभु आत्मा कैसा है ? ॐ आनंद.... ॐ शांति...' – ऐसा करके उस आत्मा को जाने तो मुक्त हो जाये और 'छोरे क्या क्या होगा ? खेती का क्या होगा ?' किया तो बैल बनो बेटा ! जाओ।
इसलिए मन को संसार में नहीं लगाना। नाव पानी में रहे लेकिन पानी नाव में नहीं रहे। शरीर संसार में रहे किंतु अपने दिमाग में संसार नहीं घुसे। अपने दिमाग में तो 'ॐ आनन्द... ॐ शांति.... ॐ माधुर्य... संसार सपना, परमात्मा अपना....' – ऐसा चिंतन चलता रहे। चिंतन करके निश्चिंत नारायण में विश्रान्ति पायें, निश्चिंत नारायण-व्यापक ब्रह्म में आयें।

2 comments:

  1. JAI HO...............

    PUJYE BAPU JI K CHARNO ME KOTI-KOTI PRANAAM.


    VERY VERY NICE DEEPAK BHAI JI.

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  2. narayan narayan.................pravu ji....

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