पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Friday, January 28, 2011


योगयात्रा-3 पुस्तक से - Yogyatra-3 pustak se

मंत्र और मंत्रदीक्षा की महिमा - Mantra aur Mantra-diksha ki mahima

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहाः 'यज्ञों में जप यज्ञ मैं हूँ।'
श्रीरामचरित मानस में भी आता है किः
मंत्रजाप मम दृढ़ विश्वासा।
पंचम भजन सो वेद प्रकासा।।
अर्थात् 'मेरे मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास – यह पाँचवीं भक्ति है।'
शास्त्रों में मंत्रजाप की अदभुत महिमा बतायी गई है। सदगुरू प्राप्त मंत्र का नियमपूर्वक जाप करने से साधक अनेक ऊँचाइयों को पा लेता है।
श्रीसदगुरूदेव की कृपा और शिष्य की श्रद्धा, इन दो पवित्र धाराओं के संगम का नाम ही दीक्षा है। गुरू का आत्मदान और शिष्य का आत्मसमर्पण, एक की कृपा और दूसरे की श्रद्धा के अतिरेक से ही यह कार्य संपन्न होता है।
सभी साधकों के लिए मंत्रदीक्षा अत्यंत अनिवार्य है। चाहे कई जन्मों की देर लगे परन्तु जब तक सदगुरू से दीक्षा प्राप्त नहीं होती तब तक सिद्धि का मार्ग अवरूद्ध ही रहता है। बिना दीक्षा के परमात्मप्राप्ति असंभव है।
दीक्षा एक दृष्टि से गुरू की ओर से ज्ञानसंचार अथवा शक्तिपात है तो दूसरी दृष्टि से शिष्य में सुषुप्त ज्ञान और शक्तियों का उदबोधन है।
उससे हृदयस्थ सुषुप्त शक्तियों के जागरण में बड़ी सहायता मिलती है और यही कारण है कि कभी-कभी तो जिनके चित्त में बड़ी भक्ति है, व्याकुलता और सरल विश्वास है, वे भी भगवत्कृपा का उतना अनुभव नहीं कर पाते जितना कि एक शिष्य को सदगुरू से प्राप्त दीक्षा द्वारा होता है।
साधक अपने ढंग से चाहे कितनी भी साधनाएँ करता रहे, तप-अनुष्ठानादि करता रहे किन्तु उसे उतना लाभ नहीं होता जितना सदगुरू के एक शिष्य को अपने गुरू से प्राप्त मंत्रदीक्षा से होता है। मंत्रदीक्षा शक्ति से सिद्धि भी प्राप्त होती है। यदि साधक उन ऋद्धि-सिद्धियों में न फँसे और आगे ही बढ़ता रहे तो एक दिन अपने स्वरूप का साक्षात्कार भी कर लेता है।
सदगुरू जब मंत्रदान करते हैं तो साधक की योग्यता के अनुरूप ही मंत्र देते हैं ताकि साधक शीघ्रता से अध्यात्म-पथ पर आगे बढ़ सके। अन्यथा सबको एक ही प्रकार का मंत्र देने से उनका विकास जल्दी नहीं होता क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की योग्यताएँ अलग-अलग होती हैं।
मंत्रजाप करने से साधक संसार के समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है। तुकारामजी महाराज कहते हैं-
"नाम से बढ़कर कोई भी साधन नहीं है। तुम और जो चाहो करो, पर नाम लेते रहो, इसमें भूल न हो, यही मेरा सबसे पुकार-पुकार कर कहना है। अन्य किसी साधन की कोई जरूरत नहीं। बस, निष्ठा के साथ नाम जपते रहो।"
जिसको गुरूमंत्र मिला है और जिसने ठीक ढंग से जप किया है वह कितने भी भयानक श्मशान में से चलकर निकल जाये, भूत प्रेत उसक कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते हैं। प्रायः उन्हीं निगुरे लोगों को भूत-प्रेत सताते हैं, जो प्रदोष काल में भोजन-मैथुन का त्याग नहीं करते और गुरूमंत्र का जाप नहीं करते।
जो साधक निष्ठापूर्वक मंत्रजाप करता है उसे कोई अनिष्ट सता नहीं सकता।
समर्थ रामदास के शिष्य छत्रपति शिवाजी की मुगलों से सदैव टक्कर होती रहती थी। मुगल उनके लिए अनेक षडयंत्र रचते थे कि कैसे भी करके शिवाजी को मार दिया जाये।
एक बार उनमें से एक मुगल सैनिक अपने धर्म के मंत्र-तंत्र के बल से सिपाहियों की नजर बचाकर, विघ्न बाधाओं को चीरकर, शिवाजी जहाँ आराम कर रहे थे उस कमरे में पहुँच गया। म्यान में से तलवार निकालकर जैसे ही उसने शिवाजी को मारने के लिए हाथ उठाया कि सहसा किसी अदृश्य शक्ति ने उसका हाथ रोक दिया। रोकने वाला उस मुगल को न दिखा किन्तु उसका हाथ अवश्य रुक गया।
मुगल ने कहाः "मैं यहाँ तक तो सबकी नजर बचाकर अपने मंत्र-तंत्र के बल से पहुँच गया, अब मुझे कौन रोक रहा है ?"
जवाब आयाः "तेरे इष्ट ने तुझे यहाँ तक पहुँचा दिया, तेरे इष्ट ने सिपाहियों से तेरी रक्षा की तो शिवाजी का इष्ट भी शिवाजी को बचाने के लिये यहाँ मौजूद है।"
उसके इष्ट से शिवाजी का इष्ट सात्त्विक था इसलिए मुगल के इष्ट ने उसकी सहायता तो की किन्तु सफल न हो सका। शिवाजी का बाल तक बाँका न कर सका।
तुमने अपने मंत्र को जितना सिद्ध किया है उतनी ही तुम्हारी रक्षा होती है।
मंत्रजाप करने से मनुष्य के अनेक पाप-ताप भस्म होने लगते है। उसका हृदय शुद्ध होने लगता है और ऐसा करते-करते एक दिन उसके हृदय में हृदयेश्वर का प्रागट्य भी हो जाता है। मंत्रजाप मनुष्य को अनेक रोगों, विघ्न-बाधाओं, अनिष्टों से ही नहीं बचाता है अपितु मानव जीवन के परम लक्ष्य परमात्मप्राप्ति के पद पर भी प्रतिष्ठित कर देता है। सदगुरू से प्राप्त मंत्र का यदि नियम से एवं निष्ठापूर्वक जाप किया जाये तो मानव में से महेश्वर का प्रागट्य होना असंभव नहीं है।
उपासना में मंत्र की प्रधानता होती है। किसी भी देवता के नाम के आग "ॐ" तथा पीछे "नमः" लगा देने से वह उस देवता का मंत्र बन जाता है। इन्ही नाममंत्रों के जप से सिद्धि प्राप्त होती है।
मंत्र दिखने में तो बहुत छोटा होता है लेकिन उसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है। हमारे पूर्वज ऋषि-महर्षियों ने मंत्र के बल पर ही इतनी बड़ी ख्याति प्राप्त है।
वर्त्तमान समय में मंत्रों का जप करने वाले सर्प या बिच्छू के काटे हुए स्थान का विष झाड़कर दूर कर देते हैं। स्तोत्रपाठ, मंत्रानुष्ठान आदि से रोगमुक्ति तथा अन्य कार्य साधते हैं लेकिन पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित लोग लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से पढ़े लिखे लोग मंत्र पर विश्वास नहीं करते। उनका ऐसा मानना है कि मंत्रविद्या अब केवल कथामात्र है। वस्तुतः आजकल मंत्रविद्या के पूर्ण ज्ञाता अनुभवी सत्पुरूष बहुत कम मिलते हैं। यदि कोई हैं तो उन्हें केवल श्रद्धा-भक्तिवाले ही पहचान पाते हैं।
जो ऐसे सत्पुरूषों द्वारा प्रदान किये गये मंत्र पर श्रद्धा रखते हैं वे आनन्द को प्राप्त होकर आज भी चिन्ता, तनाव व रोग से मुक्त बने हुए हैं। शास्त्रों में आता हैः
मंत्रे तीर्थे द्विजे देवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ।
यादृशीर्भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी।।
'मंत्र, तीर्थ, ब्राह्मण देवता, ज्योतिषी, औषध तथा गुरू में जिसकी जैसी भावना होती है उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है।"
मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तान्त्रिक और साबरी। इनका अपनी-अपनी पद्धति के अनुसार श्रद्धापूर्वक जप आदि करने से कार्य सिद्ध होता है।
मंत्र के रहस्यों को जानने वाले ब्रह्मनिष्ठ सदगुरू प्राप्त दीक्षा तथा मंत्रमात्र के उपदेश में मुहूर्त आदि की भी आवश्यकता नहीं रहती। वे जब चाहें तब दीक्षा व उपदेश प्रदान कर सकते हैं।
मंत्र जितना छोटा होता है उतना अधिक शक्तिशाली होता है। गुरू में मनुष्य, मंत्र में अक्षर था प्रतिमा में पत्थरबुद्धि रखने वाला नरकगामी होता है, ऐसा शास्त्रों में आता है।
बड़े धनभागी हैं वे लोग जिन्हें किसी मंत्रदृष्टा अनुभवसंपन्न महापुरूष द्वारा प्रदान की गई दीक्षा का लाभ प्राप्त हुआ है ! सचमुच वे महापुरूष तो जीवन ही बदल देते हैं। मंत्रों का रहस्य गहन एवं जटिल होता है। उसे वही समझ पाता है जो गुरू द्वारा प्राप्त मंत्र में अटूट श्रद्धा रख उस साधन-पथ पर चल पड़ता है।
हे मानव ! उठ, जाग और खोज ले किसी ऐसे सदगुरू को। चल पड़ उनके उपदेशानुसार.... और प्राप्त कर ले मंत्रदीक्षा... नियमपूर्वक जप कर.... फिर देख मजा ! सफलता तेरी दासी बनने को तैयार हो जाएगी।

3 comments:

  1. GOOD. It is very well defined for importance of "MANTRAS" in our Life. From this blog, I came to know the usefulness of Mantra-Diksha by SADGURU. Mantra-Diksha is a key of success for every field of life either materialistic or spiritual.

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  2. What a wonderful job you are doing. It's really beneficial for all people. Param Pujya Sant Shiromani Asaramji Bapu ki books maine pehli baar aapke is blog ke through padhi hain. I have got a number of benefits by this.

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  3. Wahji bohot badhiya, Pujya Bapuji ki durlabh darshan k sath Unke Amrit vachan sach me bohot hi prerna dayi h, ap aise hi unchi satsang dhundh kar blogs me daalte h, Gita ved puran sashtra ka saar roop satsang, wah!!! iske liye apko khub dhanyavad :)

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