पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Thursday, September 9, 2010




आरोग्यनिधि-2 पुस्तक से -  Aarogyanidhi-2 pustak se

सुखमय जीवन की कुंजियाँ
सनातन संस्कृति का महाभारत जैसा ग्रन्थ भी ईश्वरीय ज्ञान के साथ शरीर-स्वास्थ्य की कुंजियाँ धर्मराज युधिष्ठिर को पितामह भीष्म के द्वारा दिये गये उपदेशों के माध्यम से हम तक पहुँचता है। जीवन को सम्पूर्ण रूप से सुखमय बनाने का उन्नत ज्ञान सँजोये रखा है हमारे शास्त्रों नेः
सदाचार से मनुष्य को आयु, लक्ष्मी तथा इस लोक और परलोक में कीर्ति की प्राप्ति होती है। दुराचारी मनुष्य इस संसार में लम्बी आयु नहीं पाता, अतः मनुष्य यदि अपना कल्याण करना चाहता हो तो क्यों न हो, सदाचार उसकी बुरी प्रवृत्तियों को दबा देता है। सदाचार धर्मनिष्ठ तथा सच्चरित्र पुरुषों का लक्षण है।
सदाचार ही कल्याण का जनक और कीर्ति को बढ़ानेवाला है, इसी से आयु की वृद्धि होती है और यही बुरे लक्षणों का नाश करता है। सम्पूर्ण आगमों में सदाचार ही श्रेष्ठ बतलाया गया है। सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है और धर्म के प्रभाव से आयु की वृद्धि होती है।
जो मनुष्य धर्म का आचरण करते हैं और लोक कल्याणकारी कार्यों में लगे रहते हैं, उनके दर्शन न हुए हों तो भी केवल नाम सुनकर मानव-समुदाय उनमें प्रेम करने लगता है। जो मनुष्य नास्तिक, क्रियाहीन, गुरु और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले, धर्म को न जानने वाले, दुराचारी, शीलहीन, धर्म की मर्यादा को भंग करने वाले तथा दूसरे वर्ण की स्त्रियों से संपर्क रखने वाले हैं, वे इस लोक में अल्पायु होते हैं और मरने के बाद नरक में पड़ते हैं। जो सदैव अशुद्ध व चंचल रहता है, नख चबाता है, उसे दीर्घायु नहीं प्राप्त होती। ईर्ष्या करने से, सूर्योदय के समय और दिन में सोने से आयु क्षीण होती है। जो सदाचारी, श्रद्धालु, ईर्ष्यारहित, क्रोधहीन, सत्यवादी, हिंसा न करने वाला, दोषदृष्टि से रहित और कपटशून्य है, उसे दीर्घायु प्राप्त होती है।
प्रतिदिन सूर्योदय से एक घंटा पहले जागकर धर्म और अर्थ के विषय में विचार करे। मौन रहकर दंतधावन करे। दंतधावन किये बिना देव पूजा व संध्या न करे। देवपूजा व संध्या किये बिना गुरु, वृद्ध, धार्मिक, विद्वान पुरुष को छोड़कर दूसरे किसी के पास न जाय। सुबह सोकर उठने के बाद पहले माता-पिता, आचार्य तथा गुरुजनों को प्रणाम करना चाहिए।
सूर्योदय होने तक कभी न सोये, यदि किसी दिन ऐसा हो जाय तो प्रायश्चित करे, गायत्री मंत्र का जप करे, उपवास करे या फलादि पर ही रहे।
स्नानादि से निवृत्त होकर प्रातःकालीन संध्या करे। जो प्रातःकाल की संध्या करके सूर्य के सम्मुख खड़ा होता है, उसे समस्त तीर्थों में स्नान का फल मिलता है और वह सब पापों से छुटकारा पा जाता है।
सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में सूर्य भगवान को जल(अर्घ्य) देना चाहिए। इस समय आँखें बन्द करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए। सूर्यास्त के समय भी मौन होकर संध्योपासना करनी चाहिए। संध्योपासना के अंतर्गत शुद्ध व स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम व जप किये जाते हैं।
नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ नहीं फैलाना पड़ता ऐसा शास्त्रवचन है। ऋषिलोग प्रतिदिन संध्योपासना से ही दीर्घजीवी हुए हैं।
वृद्ध पुरुषों के आने पर तरुण पुरुष के प्राण ऊपर की ओर उठने लगते हैं। ऐसी दशा में वह खड़ा होकर स्वागत और प्रणाम करता है तो वे प्राण पुनः पूर्वावस्था में आ जाते हैं।
किसी भी वर्ण के पुरुष को परायी स्त्री से संसर्ग नहीं करना चाहिए। परस्त्री सेवन से मनुष्य की आयु जल्दी ही समाप्त हो जाती है। इसके समान आयु को नष्ट करने वाला संसार में दूसरा कोई कार्य नहीं है। स्त्रियों के शरीर में जितने रोमकूप होते हैं उतने ही हजार वर्षों तक व्यभिचारी पुरुषों को नरक में रहना पड़ता है। रजस्वला स्त्री के साथ कभी बातचीत न करे।
अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि को स्त्री-समागम न करे। अपनी पत्नी के साथ भी दिन में तथा ऋतुकाल के अतिरिक्त समय में समागम न करे। इससे आयु की वृद्धि होती है। सभी पर्वों के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। यदि पत्नी रजस्वला हो तो उसके पास न जाय तथा उसे भी अपने निकट न बुलाये। शास्त्र की अवज्ञा करने से जीवन दुःखमय बनता है।
दूसरों की निंदा, बदनामी और चुगली न करें, औरों को नीचा न दिखाये। निंदा करना अधर्म बताया गया है, इसलिए दूसरों की और अपनी भी निंदा नहीं करनी चाहिए। क्रूरताभरी बात न बोले। जिसके कहने से दूसरों को उद्वेग होता हो, वह रूखाई से भरी हुई बात नरक में ले जाने वाली होती है, उसे कभी मुँह से न निकाले। बाणों से बिंधा हुआ फरसे से काटा हुआ वन पुनः अंकुरित हो जाता है, किंतु दुर्वचनरूपी शस्त्र से किया हुआ भयंकर घाव कभी नहीं भरता।
हीनांग(अंधे, काने आदि), अधिकांग(छाँगुर आदि), अनपढ़, निंदित, कुरुप, धनहीन और असत्यवादी मनुष्यों की खिल्ली नहीं उड़ानी चाहिए।
नास्तिकता, वेदों की निंदा, देवताओं के प्रति अनुचित आक्षेप, द्वेष, उद्दण्डता और कठोरता – इन दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए।
मल-मूत्र त्यागने व रास्ता चलने के बाद तथा स्वाध्याय व भोजन करने से पहले पैर धो लेने चाहिए। भीगे पैर भोजन तो करे, शयन न करे। भीगे पैर भोजन करने वाला मनुष्य लम्बे समय तक जीवन धारण करता है।
परोसे हुए अन्न की निंदा नहीं करनी चाहिए। मौन होकर एकाग्रचित्त से भोजन करना चाहिए। भोजनकाल में यह अन्न पचेगा या नहीं, इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए। भोजन के बाद मन-ही-मन अग्नि का ध्यान करना चाहिए। भोजन में दही नहीं, मट्ठा पीना चाहिए तथा एक हाथ से दाहिने पैर के अँगूठे पर जल छोड़ ले फिर जल से आँख, नाक, कान व नाभि का स्पर्श करे।
पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से दीर्घायु और उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से सत्य की प्राप्ति होती है। भूमि पर बैठकर ही भोजन करे, चलते-फिरते भोजन कभी न करे। किसी दूसरे के साथ एक पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।
जिसको रजस्वला स्त्री ने छू दिया हो तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, ऐसा अन्न कदापि न खाय। जैसे – तिलों का तेल निकाल कर बनाया हुआ गजक, क्रीम निकाला हुआ दूध, रोगन(तेल) निकाला हुआ बादाम(अमेरिकन बादाम) आदि।
किसी अपवित्र मनुष्य के निकट या सत्पुरुषों के सामने बैठकर भोजन न करे। सावधानी के साथ केवल सवेरे और शाम को ही भोजन करे, बीच में कुछ भी खाना उचित नहीं है। भोजन के समय मौन रहना और आसन पर बैठना उचित है। निषिद्ध पदार्थ न खाये।
रात्रि के समय खूब डटकर भोजन न करें, दिन में भी उचित मात्रा में सेवन करे। तिल की चिक्की, गजक और तिल के बने पदार्थ भारी होते हैं। इनको पचाने में जीवनशक्ति अधिक खर्च होती है इसलिए इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है।
जूठे मुँह पढ़ना-पढ़ाना, शयन करना, मस्तक का स्पर्श करना कदापि उचित नहीं है।
यमराज कहते हैं- '' जो मनुष्य जूठे मुँह उठकर दौड़ता और स्वाध्याय करता है, मैं उसकी आयु नष्ट कर देता हूँ। उसकी संतानों को भी उससे छीन लेता हूँ। जो संध्या आदि अनध्याय के समय भी अध्ययन करता है उसके वैदिक ज्ञान और आयु का नाश हो जाता है।" भोजन करके हाथ-मुँह धोये बिना सूर्य-चन्द्र-नक्षत्र इन त्रिविध तेजों की कभी दृष्टि नहीं डालनी चाहिए।
मलिन दर्पम में मुँह न देखे। उत्तर व पश्चिम की ओर सिर करके कभी न सोये, पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर ही सिर करके सोये।
नास्तिक मनुष्यों के साथ कोई प्रतिज्ञा न करे। आसन को पैर से खींचकर या फटे हुए आसन पर न बैठे। रात्रि में स्नान न करे। स्नान के पश्चात तेल आदि की मालिश न करे। भीगे कपड़े न पहने।
गुरु के साथ कभी हठ नहीं ठानना चाहिए। गुरु प्रतिकूल बर्ताव करते हों तो भी उनके प्रति अच्छा बर्ताव करना ही उचित है। गुरु की निंदा मनुष्यों की आयु नष्ट कर देती है। महात्माओं की निंदा से मनुष्य का अकल्याण होता है।
सिर के बाल पकड़कर खींचना और मस्तक पर प्रहार करना वर्जित है। दोनों हाथ सटाकर उनसे अपना सिर न खुजलाये।
बारंबार मस्तक पर पानी न डाले। सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए। दूसरे के पहने हुए कपड़े, जूते आदि न पहने।
शयन, भ्रमण तथा पूजा के लिए अलग-अलग वस्त्र रखें। सोने की माला कभी भी पहनने से अशुद्ध नहीं होती।
संध्याकाल में नींद, स्नान, अध्ययन और भोजन करना निषिद्ध है। पूर्व या उत्तर की मुँह करके हजामत बनवानी चाहिए। इससे आयु की वृद्धि होती है। हजामत बनवाकर बिना नहाय रहना आयु की हानि करने वाला है।
जिसके गोत्र और प्रवर अपने ही समान हो तथा जो नाना के कुल में उत्पन्न हुई हो, जिसके कुल का पता न हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए। अपने से श्रेष्ठ या समान कुल में विवाह करना चाहिए।
तुम सदा उद्योगी बने रहो, क्योंकि उद्योगी मनुष्य ही सुखी और उन्नतशील होता है। प्रतिदिन पुराण, इतिहास, उपाख्यान तथा महात्माओं के जीवनचरित्र का श्रवण करना चाहिए। इन सब बातों का पालन करने से मनुष्य दीर्घजीवी होता है।
पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने सब वर्ण के लोगों पर दया करके यह उपदेश दिया था। यह यश, आयु और स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला तथा परम कल्याण का आधार है।
(महाभारत, अनुशासन पर्व से संकलित)

दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन के नियम
प्रत्येक मनुष्य दीर्घ, स्वस्थ और सुखी जीवन चाहता है। यदि स्वस्थ और दीर्घजीवी बनना हो तो कुछ नियमों को अवश्य समझ लेना चाहिए।
आसन-प्राणायाम, जप-ध्यान, संयम-सदाचार आदि से मनुष्य दीर्घजीवी होता है।
मोटे एवं सूती वस्त्र ही पहनें। सिंथेटिक वस्त्र स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हैं।
विवाह तो करें किंतु संयम-नियम से रहें, ब्रह्मचर्य का पालन करें।
आज जो कार्य करते हैं, सप्ताह में कम-से-कम एक दिन उससे मुक्त हो जाइये। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो आदमी सदा एक जैसा काम करता रहता है उसको थकान और बुढ़ापा जल्दी आ जाता है।
चाय-कॉफी, शराब-कबाब, धूम्रपान बिल्कुल त्याग दें। पानमसाले की मुसीबत से भी सदैव बचें। यह धातु को क्षीण व रक्त को दूषित करके कैसंर को जन्म देता है। अतः इसका त्याग करें।
लघुशंका करने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए, न ही पानी पीने के तुरंत बाद लघुशंका जाना चाहिए। लघुशंका करने की इच्छा हुई हो तब पानी पीना, भोजन करना, मैथुन करना आदि हितकारी नहीं है। क्योंकि ऐसा करने से भिन्न-भिन्न प्रकार के मूत्ररोग हो जाते हैं. ऐसा वेदों में स्पष्ट बताया गया है।
मल-मूत्र का वेग (हाजत) नहीं रोकना चाहिए, इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है व बीमार भी पड़ सकते हैं। अतः कुदरती हाजत यथाशीघ्र पूरी कर लेनी चाहिए।
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाना, सुबह-शाम खुली हवा में टहलना उत्तम स्वास्थ्य की कुंजी है।
दीर्घायु व स्वस्थ जीवन के लिए प्रातः कम से कम 5 मिनट तक लगातार तेज दौड़ना या चलना तथा कम से कम 15 मिनट नियमित योगासन करने चाहिए।

अपने हाथ में ही अपना आरोग्य
नाक को रोगरहित रखने के लिये हमेशा नाक में सरसों या तिल आदि तेल की बूँदें डालनी चाहिए। कफ की वृद्धि हो या सुबह के समय पित्त की वृद्धि हो अथवा दोपहर को वायु की वृद्धि हो तब शाम को तेल की बूँदें डालनी चाहिए। नाक में तेल की बूँदे डालने वाले का मुख सुगन्धित रहता है, शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़तीं, आवाज मधुर होती है, इन्द्रियाँ निर्मल रहती हैं, बाल जल्दी सफेद नहीं होते तथा फुँसियाँ नहीं होतीं।
अंगों को दबवाना, यह माँस, खून और चमड़ी को खूब साफ करता है, प्रीतिकारक होने से निद्रा लाता है, वीर्य बढ़ाता है तथा कफ, वायु एवं परिश्रमजन्य थकान का नाश करता है।
कान में नित्य तेल डालने से कान में रोग या मैल नहीं होती। बहुत ऊँचा सुनना या बहरापन नहीं होता। कान में कोई भी द्रव्य (औषधि) भोजन से पहले डालना चाहिए।
नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूहों तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है।
शरीर पर उबटन मसलने से कफ मिटता है, मेद कम होता है, वीर्य बढ़ता है, बल प्राप्त होता है, रक्तप्रवाह ठीक होता है, चमड़ी स्वच्छ तथा मुलायम होती है।
दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप, कांतिकारक, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढ़ानेवाला है और पाप तथा दारिद्रय का नाश करने वाला है
(भावप्रकाश निघण्टु)
जो मनुष्य सोते समय बिजौरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक स सकता है, खर्राटे नहीं लेता।
जो मानव सूर्योदय से पूर्व, रात का रखा हुआ आधा से सवा लीटर पानी पीने का नियम रखता है वह स्वस्थ रहता है।

प्रसन्नता और हास्य
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।
'अंतःकरण की प्रसन्नता होने पर उसके(साधक के) सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्तवाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँति स्थिर हो जाती है।'
(गीताः 2.65)
खुशी जैसी खुराक नहीं और चिंता जैसा गम नहीं। हरिनाम, रामनाम, ओंकार के उच्चारण से बहुत सारी बीमारियाँ मिटती हैं और रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। हास्य का सभी रोगों पर औषधि की नाई उत्तम प्रभाव पड़ता है। हास्य के साथ भगवन्नाम का उच्चारण एवं भगवद् भाव होने से विकार क्षीण होते हैं, चित्त का प्रसाद बढ़ता है एवं आवश्यक योग्यताओं का विकास होता है। असली हास्य से तो बहुत सारे लाभ होते हैं।
भोजन के पूर्व पैर गीले करने तथा 10 मिनट तक हँसकर फिर भोजन का ग्रास लेने से भोजन अमृत के समान लाभ करता है। पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू भोजन के पहले हँसकर बाद में ही भोजन करने बैठते थे। वे 93 वर्ष तक नीरोग रहे थे।
नकली(बनावटी) हास्य से फेफड़ों का बड़ा व्यायाम हो जाता है, श्वास लेने की क्षमता बढ़ जाती है, रक्त का संचार तेज होने लगता और शरीर में लाभकारी परिवर्तन होने लगते हैं।
दिल का रोग, हृदय की धमनी का रोग, दिल का दौरा, आधासीसी, मानसिक तनाव, सिरदर्द, खर्राटे, अम्लपित्त(एसिडिटी), अवसाद(डिप्रेशन), रक्तचाप(ब्लड प्रेशर), सर्दी-जुकाम, कैंसर आदि अनेक रोगों में हास्य से बहुत लाभ होता है।
सब रोगों की एक दवाई हँसना सीखो मेरे भाई।
दिन की शुरुआत में 20 मिनट तक हँसने से आप दिनभर तरोताजा एवं ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। हास्य आपका आत्मविश्वास बढ़ाता है।
खूब हँसो भाई ! खूब हँसो, रोते हो इस विध क्यों प्यारे ?
होना है सो होना है, पाना है सो पाना है, खोना है सो खोना है।।
सब सूत्र प्रभु के हाथों में, नाहक करना का बोझ उठाना है।।
फिकर फेंक कुएँ में, जो होगा देखा जाएगा।
पवित्र पुरुषार्थ कर ले, जो होगा देखा जायेगा।।
अधिक हास्य किसे नहीं करना चाहिए ?
जो दिल के पुराने रोगी हों, जिनको फेफड़ों से सम्बन्धित रोग हों, क्षय(टी.बी.) के मरीज हों, गर्भवती महिला या प्रसव में सिजिरियन ऑपरेशन करवाया हो, पेट का ऑपरेशन करवाया हो एवं दिल के दौरेवाले(हार्ट अटैक के) रोगियों को जोर से हास्य नहीं करना चाहिए, ठहाके नहीं मारने चाहिए।

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