पूज्य बापूजी के दुर्लभ दर्शन और सुगम ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में से अनमोल सत्संग

मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत। हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।

Saturday, March 12, 2011


आरोग्यनिधि  पुस्तक से - Aarogyanidhi pustak se


प्राकृतिक चिकित्सा के मूल तत्व 

अगर मनुष्य कुछ बातों को जान ले तो वह सदैव स्वस्थ रह सकता है।
आजकल बहुत से रोगों का मुख्य कारण स्नायु-दौर्बल्य तथा मानसिक तनाव (Tension) है जिसे दूर करने में प्रार्थना बड़ी सहायक सिद्ध होती है। प्रार्थना से आत्मविश्वास बढ़ता है, निर्भयता आती है, मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में ढीलापन (Relaxation) उत्पन्न होता है अतः स्नायविक तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिल जाता है। रात्रि-विश्राम के समय प्रार्थना का नियम व अनिद्रा रोग एवं सपनों से बचाता है।
इसी प्रकार श्वासन भी मानसिक तनाव के कारण होने वाले रोगों से बचने के लिए लाभदायी है।
प्राणायाम का नियम फेफड़ों को शक्तिशाली रखता है एवं मानसिक तथा शारीरिक रोगों से बचाता है। प्राणायाम दीर्घ जीवन जीने की कुंजी है। प्राणायाम के साथ शुभ चिन्तन किया जाये तो मानसिक एवं शारीरिक दोनों रोगों से बचाव एवं छुटकारा मिलता है। शरीर के जिस अंग में दर्द एवं दुर्बलता तथा रोग हो उसकी ओर अपना ध्यान रखते हुए प्राणायाम करना चाहिए। शुद्ध वायु नाक द्वारा अंदर भरते समय सोचना चाहिए कि प्रकृति से स्वास्थ्यवर्धक वायु वहाँ पहुँच ही है। जहाँ मुझे दर्द है। आधा मिनट श्वास रोक रखें व पीड़ित स्थान का चिन्तन कर उस अंग में हल्की-हिलचाल करें। श्वास छोड़ते समय यह भावना करनी चाहिए कि 'पीड़ित अंग से गंदी हवा के रूप में रोग बाहर निकल रहा है एवं मैं रोग मुक्त हो रहा हूँ। ॐ....ॐ....ॐ....' इस प्रकार नियमित अभ्यास करने से स्वास्थ्यप्राप्ति में बड़ी सहायता मिलती है।
सावधानीः जितना समय धीरे-धीरे श्वास अन्दर भरने में लगाया जाये, उससे दुगुना समय वायु को धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगाना चाहिए। भीतर श्वास रोकने को आभ्यांतर कुंभक व बाहर रोकने को बाह्य कुंभक कहते हैं। रोगी एवं दुर्बल व्यक्ति आभ्यांतर व बाह्य दोनों कुंभक करें। श्वास आधा मिनट न रोक सकें तो दो-पाँच सेकंड ही श्वास रोकें। ऐसे बाह्य व आभ्यांतर कुंभक को पाँच-छः बार करने से नाड़ीशुद्धि व रोगमुक्ति में अदभुत सहायता मिलती है।
स्वाध्याय अर्थात् जीवन में सत्साहित्य के अध्ययन का नियम मन को शांत एवं प्रसन्न रखकर तन को नीरोग रहने में सहायक होता है।
स्वास्थ्य का मूल आधार संयम है। रोगी अवस्था में केवल भोजनसुधार द्वारा भी खोया हुआ स्वास्थ्य प्राप्त होता है। बिना संयम के कीमती दवाई भी लाभ नहीं करती है। संयम से रहने वाले व्यक्ति को दवाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। जहाँ संयम है वहाँ स्वास्थ्य है और जहाँ स्वास्थ्य है वहीं आनन्द एवं सफलता है।
बार-बार स्वाद के वशीभूत होकर बिना भूख के खाने को असंयम और नियम से आवश्यकतानुसार स्वास्थ्यवर्धक आहार लेने को संयम कहते हैं। स्वाद की गुलामी स्वास्थ्य का घोर शत्रु है। बार-बार कुछ-न-कुछ खाते रहने के कारण अपच, मन्दाग्नि, कब्ज, पेचिश, जुकाम, खाँसी, सिरदर्द, उदरशूल आदि रोग होते हैं। फिर भी यदि हम संयम का महत्त्व न समझें तो जीवनभर दर्बलता, बीमारी, निराशा ही प्राप्त होगी।
सदैव स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है भोजन की आदतों में सुधार।
मैदे के स्थान पर चोकरयुक्त आटा, वनस्पति घी के स्थान पर तिल्ली का तेल, हो सके तो शुद्ध घी, (मूँगफली और मूँगफली का तेल स्वास्थ्य के लिए ज्यादा हितकारी नहीं।) सफेद शक्कर के स्थान पर मिश्री या साधारण गुड़ एवं शहद, अचार के स्थान पर ताजी चटनी, अण्डे-मांसादि के स्थान पर दूध-मक्खन, दाल, सूखे मेवे आदि का प्रयोग शरीर को अनेक रोगों से बचाता है।
इसी प्रकार चाय-कॉफी, शराब, बीड़ी-सिगरेट एवं तम्बाकू जैसी नशीली वस्तुओं के सेवन से बचकर भी आप अनेक रोगों से बच सकते हैं।
बाजारू मिठाइयाँ, सोने-चाँदी के वर्कवाली मिठाइयाँ, पेप्सीकोला आदि ठण्डे पेय पदार्थ, आईसक्रीम एवं चॉकलेट के सेवन से बचें।
एल्यूमिनियम के बर्तन में पकाने और खाने के स्थान पर मिट्टी, चीनी, काँच, स्टील या कलई किये हुए पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। एल्यूमिनियम के बर्तनों का भोजन टी.बी., दमा आदि कई बीमारियों को आमंत्रित करता है। सावधान !
व्यायाम, सूर्यकिरणों का सेवन, मालिश एवं समुचित विश्राम भी अनेक रोगों से रक्षा करता है।
उपरोक्त कुछ बातों को जीवन में अपनाने से मनुष्य सब रोगों से बचा रहता है और यदि कभी रोगग्रस्त हो भी जाये तो शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ कर लेता है।

3 comments:

  1. Waah ji, Pujya Bapuji ke durlabh darshan ke saath-saath health ki ye upyogi baatein. Ati uttam ji. This blog isvery useful for every person. Sleeping sickness to aaj ek general problem ban gayi hai. Shavaasan is very useful for peace of mind, which is the main cause of sleeping sickness. The knowledge of what to eat is very important for health. Sunrays are a boon for treatmenr of every kind of disease.

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  2. wah prabhu, bohot badhiya. Apki sewa yu hi khub khub badhe. Hamare Bapuji chahte h ki hamara sharir swasth rahe, man prasann rahe aur budhi me budhi-data ka prakash ho. Aise posting hamari bhakti to badhegi hi, sath me sharir swasth or budhi me budhidata ka prakash cham-cham chamkega. Apki aisi sewa ko sadhuvad!!! Hariom....

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  3. ये छोटी मगर ऊँची बातें ध्यान मे रखने से बहुत लाभ होता है।
    बीमारियाँ हो तो टिकती नही, होने वाली हो तो होती नही, ओर आगे होने कि संभावना भी कम हो जाती है। और जान है तो जहान है।
    और प्राणायाम करने से पाप भी नाश होते है,आलस्य मिटता है,stamina बढ़ता है,एकाग्रता शक्ति {concentration power} भी बढ़ती है,अरे मैंने भी क्या टॉपिक छेड़ लिया,ऐसे तो पेज ही भर जाएगा और इसके फायदे तो खतम ही नही होंगे। cheeeeeeeeelo.....
    ये सारे फायदे मैंने पूज्य श्री द्वारा प्रेरित 'बाल संस्कार केंद्र' में सीखे थे। आप लोग भी अपने बच्चों,भाइयों,बहनों आदि-आदि को बाल संस्कार केन्द्र में भेजें।

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